मागशर–पोषः २४९०ः २१ः
ने परभाव शुं–एनो भेद लक्षमां आव्या वगर निजस्वरूपनो खरो महिमा आवे नहि,
अने यथार्थ महिमा आव्या वगर तेमां एकाग्रता थाय नहि. ज्यां जड–चेतननुं
भेदज्ञान थयुं, राग अने ज्ञानने भिन्न जाण्या त्यां धर्मात्मा पोताना चिदानंदस्वरूपनो
परम अचिंत्य महिमा जाणे छे ने रागादिनो महिमा तेने छूटी जाय छे; एटले
भेदज्ञानना बळे ते पोताना उपयोगने निजस्वरूपना महिमामां लीन करे छे ने
शुद्धआत्माने अनुभवे छे. शुद्धात्माना अनुभवमां समस्त अन्य द्रव्योथी दूर वर्तता तेने
रागादिना अभावने लीधे कर्मथी अत्यंत छूटकारो थाय छे. आ रीते भेदज्ञानवडे
शुद्धात्माना उग्र अवलंबनवडे संवरनिर्जरा ने मोक्ष थाय छे.
मोक्षनुं मूळ कारण भेदज्ञान छे माटे मोक्षार्थीए ते भेदज्ञान निरंतर अति
द्रढपणे भाववायोग्य छे; शुद्धात्माने अने रागने जुदा जाणीने अतिशयपणे–धारावाही
अंतरंग प्रयत्नथी शुद्धात्मानी भावना करवा जेवी छे.
सम्पद्यते संवर एष साक्षात्
शुद्धात्मतत्त्वस्य किलोपलंभात्।
स भेदविज्ञानत एव तस्मात्
तद्भेदविज्ञानमतीव भाव्यम्।। १२९।।
अहा, आचार्यदेवे भेदज्ञाननी भावनाने केवी मलावी छे! जीवोने प्रेरणा करे छे के
हे जीवो! शुद्धात्मानी उपलब्धिने माटे आ भेदज्ञानने अतिशयपणे निरंतर भावो.
भेदज्ञाननी भावना एटले शुद्धआत्मा अने राग ए बन्नेने भिन्न जाणीने शुद्धआत्मानी
सन्मुख थवानो वारंवार प्रयत्न करवो. शुद्धआत्माना अवलंबने भेदज्ञाननी भावना छे.
भेदज्ञाननी भावनामां कांइ विकल्पनुं अवलंबन नथी. रागथी अत्यंत भिन्न
चैतन्यस्वभावनी भावनावडे कर्मनो संवर थाय छे. जुओ, शुभरागवडे संवर नथी थतो,
शुभरागनी भावनामां तो आस्रवनी भावना छे. अंतरमां चैतन्यस्वभाव तरफ ज्ञाननुं
परिणमन थतां ते ज्ञान आस्रवोथी छूटी जाय छे.
पहेलां भेदज्ञान करवुं ते ज धर्मनो एकडो छे. भेदज्ञान वगर धर्मनी विद्या शरू
थाय नहि. भेदज्ञान थया पछी पण ज्ञानी निरंतर अच्छिन्नधाराथी तेनी भावना करे छे.
भावयेत्भेदविज्ञानम् इदमच्छिन्नधारया।
तावत्यावत्परात्च्युत्वा ज्ञानं ज्ञाने प्रतिष्ठते।। १३०।।
भगवान आचार्यदेव कहे छे के अहो! आ भेदविज्ञान (चैतन्य अने रागनुं
भिन्नत्व) अच्छिन्नधाराथी विच्छेद पडया वगर अखंडपणे त्यां सुधी भाववुं के ज्यां सुधी
परभावोथी छुटुं पडीने ज्ञान ज्ञानमां ज ठरी जाय. चैतन्यनो उपयोग चैतन्यमां ज थंभी
जाय त्यांसुधी भेदज्ञाननो अभ्यास कर्या ज करवो. आ भेदज्ञानना अभ्यासमां एकला
वीतरागीचैतन्यभावनुं घोलन छे. ज्ञानमां ज्ञान ज छे ने ज्ञानमां राग जरापण नथी;