Atmadharma magazine - Ank 242-243
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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ः २२ः आत्मधर्मः २४२–२४३
राग रागमां ज छे. रागमां ज्ञान जरापण नथी–आम ज्ञान अने रागनी अत्यंत
भिन्नता वडे ज्ञानस्वभावनुं स्वसंवेदन करीने पछी पण भेदज्ञानवडे अच्छिन्नपणे ते
भाव्या ज करवुं. जुओ, आ ज्ञानीनी निरंतर भावना! वच्चे बीजा भावनी भावना
धर्मीने स्वप्ने पण आवती नथी.
भेदज्ञाननो महिमा करतां फरीने आचार्यदेव कहे छे के–
भेदविज्ञानतः सिद्धाः सिद्धा ये किल केचन।
अस्यैवाभावतो बद्धा बद्धा ये किल केचन।। १३१।।
चैतन्यचमत्कार मात्र वस्तु अंतरमां छे तेमां रागनो प्रवेश नथी,–आवा
भेदज्ञानपूर्वक चैतन्यस्वभावमां स्वसन्मुखतावडे ज मुक्ति सधाय छे. अने आवा
भेदज्ञान वगर रागमां एकतावडे जीव संसारमां रखडे छे. जे कोइ जीवो सिद्ध थया छे–
थाय छे के थशे ते आवा भेदज्ञानवडे ज सिद्ध थाय छे; अने जे कोइ जीवो बंधाया छे
तेओ आ भेदविज्ञानना अभावथी ज बंधाया छे.
एक तरफ शुद्धज्ञानस्वभाव, अने बीजी तरफ रागादि परभावो; ते बन्नेनी
भिन्नता जाणीने जेओ ज्ञानस्वभाव तरफ वळ्‌या तेओ मुक्त थया छे. अने ज्ञान तथा
रागनी एकता मानीने जेओ रागमां रोकाणा तेओ अज्ञान वडे बंधाय छे. निगोदनो
जीव संसारमां केम रखडे छे? के भेदज्ञान नथी करतो माटे; भेदज्ञान वगर भले बीजुं
बधुं करे, पण तेनावडे मोक्षनुं साधन किंचित् थतुं नथी. परभावोनी भिन्नता जाण्या
वगर परभाव छूटे कयांथी? जे जीव भेदज्ञानरूपी करवतवडे ज्ञान अने राग वच्चेनी
संधीने छेदी नांखे छे ते जीव रागथी भिन्न शुद्धात्माने अनुभवतो थको मुक्तिने साधे छे.
मोक्षनुं मूळ भेदज्ञान छे, ने संसारनुं मूळ अज्ञान छे. माटे आचार्यदेवे कह्युं के हे जीवो!
ज्ञान अने रागनी भिन्नता जाणीने निरंतर भेदज्ञानने भावो.–आमां भेदज्ञानना
विकल्पनी के गोखवानी वात नथी पण अंतरमां ज्ञानस्वभावनी सन्मुखता करीने
ज्ञानभावरूपे ज परिणम्या करवुं–तेनुं नाम भेदज्ञाननी भावना छे. ज्ञानीने
भेदज्ञाननी धारा सतत वर्त्या ज करे छे, ने ते मोक्षनुं कारण छे.
भेदज्ञान थतां ज्ञान पोताना निजभावपणे परिणम्युं, ते ज्ञान परमसंतोषरूप–
शांत–आनंदमय छे, रागादि परभावनो कलेश तेमां नथी. भेदज्ञानरूप कळा प्रगटया
पछी ज्ञानी शुद्धस्वभावने ज स्वपणे ग्रहे छे, परभावना अंशने पण पोताना
स्वभावमां ग्रहता नथी. आवा अत्यंत भेदज्ञानवडे तेने राग–द्वेष–मोह भावो छूटी
जाय छे ने कर्मनुं बंधन अटकी जाय छे. अने आवी भेदज्ञानधारावडे तेने उज्जवळ
ज्ञानप्रकाश तथा परमात्मपद प्रगटे छे. आ रीते भेदज्ञानवडे पूर्ण आनंदरूप
परमात्मपद सधाय छे. माटे–
तत् भेदविज्ञानं अतीव भाव्यं