
राग रागमां ज छे. रागमां ज्ञान जरापण नथी–आम ज्ञान अने रागनी अत्यंत
भाव्या ज करवुं. जुओ, आ ज्ञानीनी निरंतर भावना! वच्चे बीजा भावनी भावना
धर्मीने स्वप्ने पण आवती नथी.
थाय छे के थशे ते आवा भेदज्ञानवडे ज सिद्ध थाय छे; अने जे कोइ जीवो बंधाया छे
तेओ आ भेदविज्ञानना अभावथी ज बंधाया छे.
जीव संसारमां केम रखडे छे? के भेदज्ञान नथी करतो माटे; भेदज्ञान वगर भले बीजुं
बधुं करे, पण तेनावडे मोक्षनुं साधन किंचित् थतुं नथी. परभावोनी भिन्नता जाण्या
संधीने छेदी नांखे छे ते जीव रागथी भिन्न शुद्धात्माने अनुभवतो थको मुक्तिने साधे छे.
मोक्षनुं मूळ भेदज्ञान छे, ने संसारनुं मूळ अज्ञान छे. माटे आचार्यदेवे कह्युं के हे जीवो!
विकल्पनी के गोखवानी वात नथी पण अंतरमां ज्ञानस्वभावनी सन्मुखता करीने
ज्ञानभावरूपे ज परिणम्या करवुं–तेनुं नाम भेदज्ञाननी भावना छे. ज्ञानीने
भेदज्ञाननी धारा सतत वर्त्या ज करे छे, ने ते मोक्षनुं कारण छे.
पछी ज्ञानी शुद्धस्वभावने ज स्वपणे ग्रहे छे, परभावना अंशने पण पोताना
स्वभावमां ग्रहता नथी. आवा अत्यंत भेदज्ञानवडे तेने राग–द्वेष–मोह भावो छूटी
ज्ञानप्रकाश तथा परमात्मपद प्रगटे छे. आ रीते भेदज्ञानवडे पूर्ण आनंदरूप
परमात्मपद सधाय छे. माटे–