
मानीने जे प्रवर्ते छे ते जीव स्वछंदी छे, तेने “पापी” कह्यो छे.
अंतरंगशुद्धिनी अपेक्षा राखे छे. शुद्धचिदानंदस्वभावनुं भान करीने तेमां एकाग्रतावडे
जेणे परभावोनो त्याग कर्यो छे,–एवा धर्मात्मा कर्मना उदयमां जोडाता नथी, तेने कर्मो
निर्जरी जाय छे. ज्ञानरूप रहेवुं ने परभावोथी विरक्त रहेवुं–आवी ज्ञानवैराग्यशक्ति ते
सम्यग्द्रष्टिनुं चिह्न छे. आवा यथार्थ ज्ञान–वैराग्य सम्यग्द्रष्टिने ज होय छे. मिथ्याद्रष्टि
भले गमे तेटला व्रत–तप करे तोपण तेने साचो वैराग्य होतो नथी. शुभरागवडे ते
पोताने सम्यग्द्रष्टि माने छे ते मात्र अभिमानथी ज माने छे, पण जे रागमां आसक्त
छे, ऊंडे ऊंडे रागने लाभकारी माने छे–तेने सम्यक्त्व केवुं?
अमे सम्यग्द्रष्टि छीए, ने अमने बंधन थतुं नथी–केमके शास्त्रमां एम कह्युं छे.–ए
रीते भ्रमथी पोताने सम्यग्द्रष्टि मानीने रागनुं सेवन करनारा ते जीवो भले
महाव्रत पाळे के समिति पाळे तोपण आचार्यभगवान कहे छे के तेओ पापी ज छे;
केम के आत्मा शुं ने अनात्मा शुं–तेना ज्ञानथी रहित छे, एटले सम्यग्दर्शनथी रहित
छे; मिथ्यात्व ते ज मोटुं पाप छे. मिथ्यात्व टाळ्या वगर पंचमहाव्रत पाळे के समिति
पाळे पण तेने किंचित्धर्म न थाय. अज्ञानभावमां ऊभो रहीने ते रागना आचरण
करे छे, अने माने छे एम के हुं धर्म करुं छुं. सेवे राग अने माने धर्म–एमां तो
विपरीतमान्यतानुं मोटुं पाप छे.