Atmadharma magazine - Ank 242-243
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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मागशर–पोषः २४९०ः १ः
साचो पुरुषार्थ कदी निष्फळ जतो नथी
जीव अंतरना खरा अभ्यासवडे प्रयत्न करे तो उत्कृष्ट छ महिनामां जरूर
आत्मानो अनुभव अने सम्यग्दर्शन थाय.–ए सांभळीने एक व्यक्तिए पूछयुं के अमे
पुरुषार्थ तो घणो करीए छीए पण सम्यग्दर्शन थतुं नथी?
तेना उत्तरमां गुरुदेवे कह्युं के अरे भाई! सम्यक्त्व माटेनो खरो पुरुषार्थ करे
अने सम्यक्त्व न थाय एम बने नहि. कारण प्रमाणे कार्य थाय ज–एवी कारण–
कार्यनी संधि छे. कार्य नथी प्रगटतुं तो समज के तारा कारणमां ज क्यांक भूल छे.
तारो पुरुषार्थ कयांक रागनी रुचिमां रोकायेलो छे. जो स्वभाव तरफना पुरुषार्थनी
धारा उपडे तो अंतर्मुहूर्तमां जरूर निर्विकल्प अनुभव सहित सम्यग्दर्शन थाय.
स्वभावनो प्रयत्न करे नहि, प्रयत्न तो रागनो करे अने कहे के अमे घणो
प्रयत्न करीए छीए छतां सम्यक्त्व थतुं नथी, तेने कारण–कार्यना मेळनी खबर
नथी. कारण आपे रागनुं, अने कार्य मांगे वीतरागनुं, प्रयत्न करे विभावनो अने
कार्य मागे स्वभावनुं–ए कयांथी मळे? भाई, सम्यक्त्वने योग्य कारण तुं आप तो
जरूर सम्यग्दर्शनरूप कार्य प्रगटे. ए सिवाय बीजा लाख कारण गमे तेटलो काळ
सेव्या कर तोपण तेमांथी सम्यक्त्वरूप कार्य आवे नहि. माटे सम्यक्त्वनो खरो
पुरुषार्थ शुं छे ते समज, अने यथार्थ कारण–कार्यनो मेळ समजीने पुरुषार्थ कर, तो
तारुं कार्य प्रगटे. साचो पुरुषार्थ कदी निष्फळ जतो नथी.