Atmadharma magazine - Ank 242-243
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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मागशर–पोषः २४९०ः पः
ओळखी शके छे. ज्ञानीनी जातनो भाव पोतामां प्रगट कर्या वगर (कजातमां
रहीने) ज्ञानीनी खरी ओळखाण केम थाय? न ज थाय. माटे कह्युं के बीजावडे
एकला अनुमानथी आत्मा ओळखातो नथी. आ आत्मा केवळज्ञानी छे, आ आत्मा
मुनि छे आ आत्मा धर्मात्मा छे–एवी खरी ओळखाण स्वसंवेदन–प्रत्यक्षपूर्वकना
अनुमानथी ज थाय छे. आवो ज आत्मानो असाधारण स्वभाव छे. आ चोथा
बोलमां घणीघणी गंभीरता छे.
वळी आत्मा पोते पोताना स्वसंवेदन वगर बीजाने एकला अनुमानथी जाणे–
एवो नथी. अंशे प्रत्यक्षपूर्वकनुं अनुमान होय–ते बराबर होय, परंतु प्रत्यक्ष वगरनुं
आत्मानुं एकलुं अनुमान यथार्थ होतुं नथी, जेम धूमाडाथी अग्निनुं अनुमान थइ शके
छे, तेम इन्द्रिय द्वारा देखाता चिह्नवडे आत्मानुं अनुमान थइ जाय–एम बनतुं नथी.
अहा, स्वसंवेदनथी स्वने जाण्या वगर परना आत्मानुं अनुमान पण थइ शकतुं नथी.
स्वसंवेदन वगर बधुं थोथेथोथां छे.
आत्मा प्रत्यक्षज्ञाता छे, एटले लिंगद्वारा (पांच इन्द्रियद्वारा के रागद्वारा)
जाणनारो ते नथी, ते तो प्रत्यक्ष जाणनारो छे. इन्द्रियोथी ने रागथी जुदो पडयो ते ज
आत्मा छे. अहा, एकेक बोल ओळखतां आत्मानुं रागथी ने इन्द्रियोथी अत्यंत
भिन्नस्वरूप ओळखाय छे. भाई, तुं रागथी ने इन्द्रियोथी जुदो न पड तो आत्मानुं
परमार्थस्वरूप तारा ज्ञानमां के अनुमानमां पण नहीं आवे.
आत्मा उपयोगस्वरूप छे, उपयोग तेनुं लक्षण छे; ते उपयोगलक्षण केवुं छे?–
बाह्यपदार्थोना अवलंबने काम करे एवुं तेनुं स्वरूप नथी, पण आत्माना परम चिदानंद
स्वभावने वळगीने जे उपयोग काम करे ते ज आत्मानुं खरुं लक्षण छे. स्वरूपने अवलंबे
एवो उपयोग ते ज आत्मा छे, आत्मा साथे एकता करे ते ज उपयोग आत्मा छे. परने
अवलंबे तेने खरेखर आत्मानुं लक्षण कहेता नथी.
अहा, मुनिओए जंगलमां बेठा बेठा अंतरमां ऊंडा ऊतरीने चैतन्यरसना
घोलन कर्या छे, सिद्ध साथे वातुं करी छे. एकेक बोलमां आत्माना गंभीर रहस्यो
खोलीने अमृतचंद्राचार्यदेवे खरेखर अमृत रेडया छे. संतोए अलौकिक काम कर्या छे.
जुओ, आ गाथामां सीमंधरनाथ परमात्मानो साक्षात् सन्देशो लावीने
कुंदकुंदाचार्यदेव कहे छे के हुं भगवान पासेथी आवो सन्देशो लाव्यो छुं. जेने सुख–
शांति जोइती होय तेओ आ सन्देशो झीलीने ज्ञानानंदस्वरूप आत्मामां उपयोगने
वाळो. आत्मानुं लक्षण जे उपयोग, ते आत्माने ज अवलंबीने काम करे छे, बाह्य
पदार्थोनुं अवलंबन तेने नथी, रागनुं पण अवलंबन तेने नथी. जे उपयोग अंतर्मुख
थइने आत्मानुं अवलंबन न करे ने बहिर्मुखपणे एकला परने ज अवलंबे,–तेने
खरेखर आत्मानो उपयोग कहेता नथी, केमके ते उपयोगमां स्वज्ञेयपणे आत्मा आव्यो
नथी. अरे जीव! तारा उप–