Atmadharma magazine - Ank 244
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: ६: आत्मधर्म माह: २४९०
मान करे छे, एटले रागथी जुदा पडीने श्रुतज्ञानने स्वसन्मुख करीने उल्लसित परिणामे
भवरहित भगवंतोने नमस्कार करे छे. ते भावनमस्कार भवना अभावनुं कारण छे. जुओ, आ
ज्ञाननी विशेषता. अनंता केवळज्ञानी जिनवरोने ज्ञानमां लईने नमस्कार करे छे तेमां ज्ञान
रागथी जुदुं पडीने स्वभावरूप प्रणमे छे. ए रीते जेटली स्वसन्मुख वीतराग–परिणति थई
तेटला भवनमस्कार छे, ने ते असाधारण मंगळ छे, ते भवने जीतवानी रीत छे.
‘अनंता सर्वज्ञो! ’ अहा, एने ज्ञानमां लीधा ते ज्ञाननी महत्ता केटली? वाह!
कुंदकुंदाचार्यदेव पोन्नूर जेवा वन पर्वतमां बेठाबेठा अनंता तीर्थंकरोने लक्षमां लईने, चैतन्यना
अध्यात्मरसमां कलम बोळी–बोळीने आ शास्त्रो रचता हशे, –ए वखतनी केवी स्थिति हशे!!
मंगलं भगवान् वीरो अने मंगल गौतमो गणी–ए तीर्थंकर अने गणधर पछी तरत ज
मांगलिकमां जेमनुं नाम आव्युं– (मंगलं कुन्दकुन्दार्यो) –तेमना महिमानी शी वात! तेमणे
तीर्थंकरोना विरहमां आ भरतक्षेत्रमां जैनशासनने थंभावी राख्युं छे, आचार्यपदे रहीने तीर्थंकर
जेवा काम कर्यां छे. तेओ अहीं मांगळिकमां सर्वज्ञ भगवानने अपूर्वभावे नमस्कार करे छे:
णमो जिणाणं जिदभवाणं।
अनादिप्रवाहथी प्रवर्तता तीर्थंकरोने ज्ञानमां लक्षगत करवा जाय त्यां..... अहा!
निर्विकल्पता ज थई जाय छे. तीर्थंकरोनो प्रवाह अनादि... जेनी कोई शरूआत नहि, तेने ज्ञानमां
लेवा जाय तो ज्ञान रागथी जुदुं पडीने अतीन्द्रिय थया वगर रहे नहि. ज्यां श्रुतज्ञाने अनंत
तीर्थंकरोने पोतामां वसाव्या त्यां ते ज्ञान निःशंक थई गयुं, रागरहित थई गयुं, निर्विकल्प थईने
स्वरूपमां परिणम्युं.
भवने जीतनारा तीर्थंकरो–केवळीभगवंतोनो प्रवाह अनादि अने तेने सेवनारा सो
ईन्द्रोनो प्रवाह पण अनादिनो; सो ईन्द्रोना अधिदेव एवा जे तीर्थंकरो, तेने सेवनारा
गणधरमुनिंद्रो अने सो ईन्द्रो–ते बधायनो प्रवाह जगतमां अनादिनो छे, तेमां त्रट पडे नहि,
तेनो अभाव जगतमां कदी न होय. –आवो निर्णय करनारुं ज्ञान निर्विकल्प थईने
असाधारण नमस्कार करे छे, एटले पोते पण साधक थईने ए तीर्थंकरोने गणधरोनी श्रेणीना
प्रवाहमां भळे छे.
अहा, भगवंतो जितभव छे; ए जितभव जिनवरोने नमस्कार करनारुं ज्ञान पण
भवनो नाश करनारुं छे, जितभव छे.
ए भगवान अर्हंतोनी वाणी दिव्य छे, त्रण लोकने आनंदकारी, प्रसन्नकारी, मधुर छे,
निर्मळ छे ने हितमार्गनी प्रकाशक छे. सघळाय जीवोने निर्बाध विशुद्ध आत्मतत्त्वनी उपलब्धिनो
उपाय कहेनारी होवाथी हितोपदेशी छे. जुओ, आ भगवाननी वाणीनो उपदेश! उपदेशमां
भगवाने शुं कह्युं? के