माह: २४९० आत्मधर्म : ५:
णमो जिणाणं जिदभवाणं
जितभव नमुं जिनराजने
[पंचास्तिकायनी पहेली गाथा उपरनुं अद्भुत भावभीनुं प्रवचन]
आजे (शास्त्रीय पोष वद आठमे)
कुंदकुंदाचार्यदेवना आचार्यपद–आरोहणनो मंगळ दिवस छे.
आ भरतक्षेत्रना महान धर्मधूरंधर सन्त कुंदकुंदाचार्यदेवे
भगवानना शासनना रक्षक तरीके जैनशासननो दोर
आजे हाथमां लीधो. लोकोए भेगा थईने बहुमानपूर्वक
तेमने आचार्यपदे स्थाप्या... पछी तेओ विदेहक्षेत्रमां
सीमंधर परमात्मा पासे गयेला, ने भगवाननो दिव्यध्वनि
साक्षात् सांभळीने पछी तेमणे आ समयसार,
पंचास्तिकाय वगेरे महान अलौकिकशास्त्रो रच्या... तेमांथी
आ पंचास्तिकायनी पहेली गाथामां जितभाव जिनेन्द्रोने
नमस्काररूप असाधारणमंगळ करे छे–
णमो जिणाणं जिदभवाणंं
शत–ईन्द्रवंदित त्रिजगहित–निर्मळ–मधुर वदनारने,
निःसीम गुण धरनारने, जितभव नमुं जिनराजने.
जुओ, आ असाधारण मांगळिक! अनंत गुणथी भरेलुं आनंदधाम जे आत्मतत्त्व तेमां
निर्मळ वीतरागपरिणतिद्वारा प्रणमन ते भाव नमस्कार छे, ने ते असाधारण मांगळिक छे.
आवा भाव नमस्कार वडे जितभव जिनभावने जे नम्यो तेने भवनो नाश थया विना रहे नहि.
भगवाने भवने जीत्या छे ने भगवाननो उपदेश चार गतिना भ्रमणनो नाशक छे. भवनो नाश
कोने थाय? के भगवाननो उपदेश झीलीने जे अंतर्मुख नमे–परिणामे तेने भवनो नाश थाय छे.
आचार्यदेव कहे छे के अहो! आवा उपदेशना देनारा जिनवर भगवंतोने नमस्कार हो.
विकल्पथी नमस्कार करवो ते साधारण नमस्कार छे; निर्विकल्प परिणतिरूप
भावनमस्कार ते असाधारण नमस्कार छे. अनादिना प्रवाहमां अनंता तीर्थंकरो थया तेमने
स्मरणमां लावीने ज्ञानमां तेमनुं अचिंत्य बहु–