माह: २४९० आत्मधर्म : १७:
ते क्यारेक आहार माटे जता होय, छतां त्यारे पण तेमनो आत्मा आहारनो अनीच्छक ज छे,
आहारनी जे ईच्छा–तेनाथी जुदो ज तेमनो आत्मा ते वखते ज्ञानमयभावे परिणमे छे. समकिती
अविरती होय तेने पण एम ज छे.
अहा, संत मुनि धर्मात्मा, मोक्षना साधक, उपशांत वनजंगलमां मुनिवरोना समूह वच्चे
बिराजता होय, जेमनी शांतमुद्रा वचनदान वगर ज (मौनपणे ज) मोक्षमार्ग दर्शावी रही होय!
एवा मुनि पासे जईने विनयपूर्वक कोई निकटभव्य जीव मोक्षनो उपाय पूछे छे, ने तेने
“सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्ग:” एम कहीने आचार्यदेव मोक्षनो मार्ग बतावे छे. एनुं
सरस वर्णन सर्वार्थ सिद्धिनी उत्थानिकामां पूज्यपाद स्वामीए कर्युं छे. वाह! मुनि तो मोक्षनुं
स्थान छे... ते पोते ज मोक्षमार्ग छे. ध्यानमां बेठेला ए मुनि वगरबोल्ये पण मोक्षनो उपदेश
आपे छे. ए मुनि पोते ज मोक्षनो मार्ग
साक्षत् छे, ए मूर्तिमान मोक्षमार्गने जोतां ने ओळखतां पात्र जीवने ख्यालमां आवी
जाय के वाह! मोक्षमार्ग आवो होय! आम मुनिराज वगर बोल्ये मोक्षमार्गनुं प्रदर्शन करी रह्या
छे... निर्ग्रंथ महात्माओनी मुद्रा मोक्षमार्गनी सम्यक्प्रतीति करावे छे.
अहा, आवा मुनिवरो चैतन्यरसमां झूलता होय छे; स्वरूपना अनुभवमांथी बहार
आवीने आहारनी वृत्ति ऊठे तेने पण मुनिवरो निश्चय प्रत्याख्याननो भंग समजे छे, अपराध
समजे छे. केमके मुनिदशा वखते स्वरूपमां लीन थवानी ज भावना हती, चौविध आहारनुं
प्रत्याख्यान हतुं, तेने बदले आहारादिनी वृत्ति उठी तेटलो प्रत्याख्याननो भंग थयो;, एटले
समाधि मरण टाणे मुनि तेनुं प्रतिक्रमण करीने स्वरूपमां ठरवा मांगे छे. आ संबंधी सुंदर वर्णन
श्री जयधवलाना पहेलां भागमां छे.
अहा, मुनिदशा शुं छे, –अरे, समकिती गृहस्थनी दशा शुं छे तेनी पण लोकोने खबर
नथी. एनुं आखुं परिणमन पलटी गयुं छे. बहारथी तो गृहस्थ के मुनि आहारादि क्रियामां
प्रवर्तता देखाय छे, ते संबंधी ईच्छा करता देखाय छे, पण अंदरमां ते आहारनी क्रियाथी ने
ईच्छानी क्रियाथी पण जुदो ज्ञाननो प्रवाह चाली रह्यो. ते ज्ञानधारा अज्ञानीने देखाती नथी.
विकल्पथी छूटी पडेली ज्ञानधारा मोक्ष तरफ चाली जाय छे. विकल्प आवे तेने जुदो जाणीने ज्ञानी
निर्जरावतो जाय छे एटले ते विकल्पनो ज्ञायक ज छे.
धर्मी जीवे आत्माना निर्विकल्प चैतन्यरसनो स्वाद चाख्यो छे, ते स्वादनी मीठास पासे
सर्वे परभावोनी मीठास छूटी गई छे. एटले ते कोई पण परभावने ईच्छतो नथी, तेमज
बहारमां अशन–पान वगेरे कोई पण परद्रव्यमां एकत्वबुद्धिनी ईच्छा तेने नथी.
समस्त शुभ–अशुभ भावोथी, तेमज