Atmadharma magazine - Ank 244
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: २०: आत्मधर्म माह: २४९०
अरे, आ संसारमां मनुष्यपणुं मळवुं पण महा दुर्लभ छे, तो मुनिदशानी तो शी वात!!
अरे, सम्यग्दर्शन पण महा दुर्लभ चीज छे. ज्यां सम्यग्दर्शन थयुं त्यां परमात्माना घरमां प्रवेश
कर्यो. अमारा स्वरूपमां जगतनो प्रवेश नथी ने जगतना पदार्थोमां अमे नथी, एवा भानपूर्वक
आत्माने साधता वच्चे धर्मीने पण मुनि वगेरे प्रत्ये भक्तिना शुभभाव आवे छे, ने
आहारदानादिना भाव आवे छे.
चरमशरीरी भरत चक्रवर्ती जमवा बेसता पहेलां चिंतवे छे के अहा, कोई मुनिराज
अत्यारे मारा आंगणे पधारे तो तेमने आहारदान दईने पछी हुं जमुं. आवी भावनाथी उघाडे
पगे महेल बहार जईने चोकमां उभा उभा मुनिओनी वाट जुए छे. त्यां कुदरतयोगे बे
मुनिराज आकाशमां विहार करतां करतां अयोध्यामां ऊतरे छे. तेमने जोतां भरत चक्रवर्तीना
रोमरोम हर्षथी उल्लसी जाय छे. “पधारो मुनिराज पधारो” एम कहीने परम विनयथी तेमनुं
बहुमान करीने, विधिपूर्वक पडगाहन करीने, नवधा भक्तिपूर्वक आहारदान आपे छे. अहा, ए
वखतनी एनी भक्ति!! एनुं शास्त्रमां घणुं वर्णन आवे छे. आजे धन्य अवतार! धन्य घडी!
आजे कल्पवृक्ष मारे आंगणे आव्युं... साक्षात् मोक्षमार्ग मारे आंगणे आव्यो!
आ तो मुनिओनो दाखलो आप्यो, तेम समकिती गृहस्थ प्रत्ये पण धर्मीने के धर्मना
जिज्ञासुने वात्सल्य ने बहुमान आवे छे. सत्पंथे चडेला जीवोने संत धर्मात्मा प्रत्ये, देव–गुरु–
धर्मनी प्रभावना माटे, ज्ञाननी प्रभावना माटे घणो घणो उत्साह आवे छे. जेम कारीगर जेम
जेम मकान बांधे छे. तेम तेम ते ऊंचे चडतो जाय छे. तेम धर्मीजीव धर्मात्माओनुं उत्कृष्ट बहुमान
करतां करतां पोते धर्ममां आगळ वधतो जाय छे. धर्मात्माने भक्तिथी दीधेलो एक कोळियो
हजारगणो थईने फळे छे–एटले शुं? के तेमां धर्मात्मा प्रत्ये भक्तिनो पोतानो जे भाव छे तेनाथी
एवा ऊंचा पुण्य बंधाय छे के तेना फळमां स्वर्गादिनो वैभव मळशे. परंतु ते वैभवनुं बहुमान
नथी, बहुमान तो धर्मने ने धर्मने साधनारा धर्मात्मानुं ज छे. धर्मात्मा तो अल्पकाळे मोक्ष जशे
ने तेने ओळखीने बहुमान करनार पण तेमनी साथे साथे अल्पकाळे मोक्ष पामशे.
भाई, आवो धर्म समजीने ते करवा जेवुं छे. “हमणां नहींने पछी करशुं” –एम तेमां
मुदत करवा जेवुं नथी. जेने खरी रुचि होय ते मुदत मांगतो नथी. ‘हमणा आत्मानुं ज्ञान न
थई शके’ एम जे कहे छे तेने धर्मनी खरी रुचि ज नथी. माटे आत्माने ओळखावनारा
धर्मात्माओने ओळखीने बहुमानादि करवुं एवो उपदेश छे.