Atmadharma magazine - Ank 244
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 28 of 38

background image
: २४: आत्मधर्म माह: २४९०
बधाय भगवान अर्हंतदेवोए उपासेलो मोक्षमार्ग
स. गा. ४०८–४०९ उपर
पोष पूर्णिमाना सुंदर प्रवचनमांथी
शुद्धज्ञानमय आत्मा छे, ते अमूर्तिक छे; आवा शुद्धज्ञानमय आत्मामां देह के रागादि
भावो नथी; देहथी ने रागथी पार एवा शुद्धज्ञानमय आत्मानुं सेवन ते ज मोक्षमार्ग छे, परंतु
एनाथी भिन्न एवुं द्रव्यलिंग (–नग्न–शरीर के महाव्रतादिना विकल्पो) ते कोई मोक्ष–मार्ग नथी.
शुद्धज्ञानस्वभावनी सन्मुखताथी पोते आवा मोक्षमर्गना उपासक थईने आचार्यदेव
बधाय अर्हंतदेवोने साक्षीपणे उतारीने कहे छे के अहो! बधाय भगवान अर्हंतदेवोए
आवा दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी ज मोक्षमार्गपणे उपासना करी छे–एम जोवामां आवे छे.
अमे
तो देहादि द्रव्यलिंगनुं ममत्व छोडीने, शुद्धज्ञानना सेवन वडे दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी उपासनाथी
मोक्षमार्ग साधी रह्या छीए, ने बधाय अर्हंत भगवंतोए पण आ ज रीते मोक्षमार्गनी उपासना
करी हती एम निःशंकपणे अमारा निर्णयमां आवे छे.
जो देहमय लिंग के ते तरफना शुभविकल्पो ते मोक्षनुं कारण होय तो अर्हंतभगवंतो तेनुं
ममत्व छोडीने दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी उपासना शा माटे करत? द्रव्यलिंगथी ज मोक्ष पामत!
परंतु अर्हंतभगवंतोए तो देहादिथी ने रागादिथी विमुख थईने, शुद्धज्ञानमय चिदानंद तत्त्वनी
सन्मुखता वडे दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी ज उपासना करी; माटे ए नक्की थयुं के देहमय लिंग ते
मोक्षमार्ग नथी, राग पण मोक्षमार्ग नथी, परमार्थे दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी उपासना ते ज
मोक्षमार्ग छे. दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी उपासना कई रीते थाय? के शुद्ध ज्ञानमय आत्माना
सेवनथी ज ते रत्नत्रयरूप मोक्षमार्गनी उपासना थाय छे.
अहा! आचार्यदेवनी केटली निःशंकता! अंदर पोते तो निर्विकल्पअनुभवमां झुलता
झुलता आवा मोक्षमार्गने साधी रह्या छे, ने बेधडकपणे कहे छे के बधाय भगवान अर्हंतदेवोने
शुद्धज्ञानमयपणुं छे, ने तेओए द्रव्यलिंगना आश्रयभूत शरीरनुं ममत्व छोडी दीधुं छे, एटले
द्रव्यलिंगना त्यागवडे दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी मोक्षमार्गपणे उपासना जोवामां आवे छे. बधाय
तीर्थंकरोए मोक्षमार्ग आ एक ज रीते उपस्यो छे, एम अमारा जोवामां आवे छे.
कोई कहे के “जोवामां आवे छे” एम कह्युं तो शुं आचार्यदेवे अर्हंतदेवोने नजरे जोया छे?
अत्यारे के कुंदकुंदाचार्यदेव हता त्यारे पण अहीं अर्हंतदेव तो न हता तो तेने अहीं कहे