Atmadharma magazine - Ank 245
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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फागण : १ :
वास्तविक जीवन

आत्मानुं वास्तविक जीवन शुं छे ते आचार्यदेव जीवत्वशक्तिना वर्णनमां देखाडे
छे. बहारनी सगवडताए जीववुं के अगवडताए खेदखिन्न थईने जीववुं ते जीवनुं खरुं
जीवन ज नथी. अनंतशक्तिनी संपदाथी भरपूर एवा चैतन्यभावमां तन्मय रहीने
स्वाश्रयपणे ज्ञान–आनंदमय जीवन जीववुं ते ज खरुं जीवन छे. श्री नेमनाथप्रभुनी
स्तुतिमां कह्युं छे के हे भगवान!
“तारुं जीवन खरुं, तारुं जीवन....
जीवी जाण्युं नेमनाथे जीवन....”

द्रव्य, गुण ने पर्याय त्रणेक एकरूप चैतन्यमय भावप्राणने धारण करीने टके
ते जीवनुं खरुं जीवन छे. भाई, तारे साचुं जीवन जीववुं छे ने! तो तारा जीवननुं
कारण कोण? तारा जीवनना प्राण कोण? ते ओळख. चैतन्यभाव ज तारा जीवननुं
कारण छे. चैतन्यभाव ज तारा प्राण छे. आवी चैतन्यभावने धारण करनारी
जीवत्वशक्तिनी ओळखाण ते मोक्षतत्त्वनी दातार छे. ए जीवनमां आनंद अने
प्रभुताना खजाना भर्या छे.
(––पहेली शक्तिना प्रवचनमांथी)