Atmadharma magazine - Ank 245
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म फागण: र४९० :
र. त्न. त्र. य. न अ. र. ध. न
(मोक्षप्राभृत गा. ४७ थी प३ उपरना प्रवचनमांथी)
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी आराधना ते जिनमुद्रा छे, ते वीतरागी जिनमुद्रा
सम्यग्दर्शन सहितनी चारित्रदशा होय त्यां बहारमां पण दिगंबर द्रव्यलिंग
रत्नत्रयना आराधक भावलिंगी मुनिओ आ लोक के परलोक बंनेना
लोभरहित निरपेक्षवृत्तिथी अंतरमां चिदानंद परम तत्त्वना ध्यानमां मग्न होय छे,
तेओ वर्तमानमां ज