Atmadharma magazine - Ank 245
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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फागण: र४९० : आत्मधर्म : ५ :
द्रष्टि तो रागनो केडायत छे. रागना पंथे चालनारो छे, तेने वीतराग
परमात्मानी खरी भक्ति होती नथी. अने धर्मी तो वीतरागनो केडायत छे एटले
वीतराग प्रत्ये खरी भक्ति तेने होय छे. बहारथी कदाचित अज्ञानीने अने
ज्ञानीने भक्तिनुं सरखापणुं देखाय, पण अंतरमां मोटो आंतरो छे, ज्ञानीना
अंतरमां वीगराग स्वभावना सेवनपूर्वकनी भक्ति छे, अज्ञानीना अंतरमां
रागनुं ज सेवन छे.
ज्ञानी शिष्य जेनाथी आत्मज्ञान पाम्यो ते गुरुने कहे छे के हे गुरु! आपना
प्रतापे अमे भवसागरने तर्या अनंत भवसमुद्रमांथी आपे अमने पार ऊतार्या...
आप न मळ्‌या होत तो अमे संसारमां रखडता होत! आपे अमने परमकृपा
करीने पार ऊतार्या. आपना चरणना प्रसादथी ज अमने रत्नत्रयनी
आराधनानी प्राप्ति थई. आपनो महा उपकार छे.
ए वात नेमिचन्द्रसिद्धांत
चक्रवर्तीए गोमट्टसारमां करी छे.
साधर्मी धर्मात्मा के धर्मनुं सेवन करनारा सरखा साधर्मी–तेना प्रत्ये जेने प्रेम न
आवे–अनुमोदना न आवे तेने धर्मीनी ने ध्याननी रुचि ज नथी. धर्मनी प्रीती होय
तेने सम्यग्दर्शनादि धरनार प्रत्ये पण प्रेम होय छे. धर्म धर्मी वगर होतो नथी. ध्याननो
दंभ करे ने ध्यानवंत सम्यग्द्रष्टि धर्मात्मा प्रत्ये प्रेम–वात्सल्य–भक्ति न आवे ध्याननी
अनुरक्ति तेने नथी. अरे, देव–गुरु धर्मात्माना अमे दासानुदास छीए–एम जेने
विनयबहुमान नथी तेनी वृत्ति धर्ममां नथी, तेनी वृत्ति बहार बीजे क््यांक फरे छे–एम
समजवुं. जे देव–गुरुनी भक्ति सहित छे, अने संयमी–साधर्मीओ प्रत्ये अनुरक्त छे ते
ज सम्यक्त्वनो उद्वहक छे एटले के सम्यक्त्वनी आराधना सहित छे, अने तेज
ध्यानरक्त होय छे. जेने देव–गुरु प्रत्ये भक्ति के साधर्मी प्रत्ये अनुरक्ति नथी तेने
सम्यग्दर्शन के ध्यान होतुं नथी; ध्यान ते तो कल्पनाना तरंग छे.
ध्यान सम्यग्द्रष्टि ज होय छे. सम्यग्दर्शन सहित ज्ञानी अंतर्मुहूर्त मात्रमां जे
कर्मो खपावशे, ते अज्ञानी उग्रतप वडे पण खपावी शकतो नथी. अज्ञानीना उग्रतप
करतां पण सम्यग्ज्ञाननुं महान सामर्थ्य छे. ज्ञानी अंतरमां चैतन्य उपर मीट मांडीने
एक क्षणमां अनंता कर्मोने खपावी नाखशे. अज्ञानी घोर तपना कष्ट सहन करीने घणा
भवोमां जे कर्म खपावशे, ते कर्मो चैतन्यनी आराधना वडे ज्ञानी–धर्मात्मा तप वगर
पण क्षणमात्रमां खपावी नांखशे. आवुं सम्यग्ज्ञाननुं परम सामर्थ्य छे. माटे
सम्यग्दर्शन–ज्ञानसहित चारित्रनी आराधनानो उपदेश छे.