Atmadharma magazine - Ank 245
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म फागण: र४९० :
मोक्षना साधक शूरवीर होय छे,
ते रागनी प्रीतिमां रोकाता नथी
[पंचास्तिकाय गाथा १ उपर मागशर वद आठमना प्रवचननो छेल्लो
भाग: आ लेख आत्मधर्मना गतांकमां छापवानो हतो, पण प्रवासना कारणे ते
छापवो रही गयेल, तेथी आ अंकमां अपायो छे.]
भगवान तीर्थंकरदेवनो उपदेश–के जे निर्बाधपणे शुद्धात्मानी प्रप्ति
करावनारो छे ते उपदेश झीलीने जे जीव चिदानंदस्वभावने साधवा नीकळ्‌यो
तेना पुरुषार्थनो वेग स्वभाव तरफ होय छे. ते परभाव सामे जुए नहि,
परभावनी प्रीतिमां ते अटके नहि. ‘आ रागनो कणियो शुभ छे ते मने कंईक
लाभ करशे, कंईक मदद करशे’ –एम रागनी सामे जोवा मोक्षार्थी जीव ऊभो न
रहे,.... ए तो निरपेक्ष थईने वीरपणे वीतरागस्वभाव तरफनी श्रेणीए चडे छे.
तीर्थंकरोनी ने वीरसंतोनी वाणी जीवने पुरुषार्थ जगाडनारी छे. ते कहे छे के अरे
जीव! तुं वीतरागमार्गने साधवा नीकळ्‌यो–ने त्यां वच्चे पाछो वळीने रागनी
सामे जोवा ऊभो रहे छे? ––अरे नमाला! शुं तुं वीतरागमार्गने साधवा
नीकळ्‌यो छो? शुं आम रागनी सामे जोये वीतरागमार्ग सधाता हशे? तुं
वीतरागमार्ग साधवा नीकळ्‌यो ने हजी तने रागनो रस छे? ––छोडी दे ए
रागनुं अवलंबन, छोड एनो प्रेम! –ने वीर थईने उपयोगने झुकाव तारा
स्वभावमां. वीतरागमार्गनो साधक शूरवीर होय छे, ते एवो कायर नथी होतो
के क्षणिक रागनी वृत्तिथी लूंटाई जाय. ‘वीरनो मारग छे शूरानो........ कायरनुं
नहीं काम जो..... ’
आ वात समजाववा राजपुत्रनुं द्रष्टांत: एक रजपूत, जुवानजोध ताजो ज
परणीने आवेलो त्यां तो राज उपर शत्रु आव्या, तेने जीतवा माटे लडाईमां
जवानी हाक वागो.... रजपूतने लडाईमां जवानुं थयुं; रजपूत माताए हसते
मुखडे दीकराने विदाय आपी. बहादूर रजपूताणीए पण बहादूरीथी पतिने
विदाय आपी. पण––ते रजपूत लडाईमां