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जोईने वीर रजपूताणीथी रहेवायुं नहि, हाकल पाडीने तेणे कह्युं: ऊभा रहो. आ मोढुं
भेगुं लेता जाव एटले तमारुं चित्त लडाईमां लागे.––एम कहीने तेणे पोतानुं माथुं
कापीने तेनी सामे धरी दीधुं. रजपूत तो आभो ज बनी गयो..... तेनी माता कहे छे:
अरे कायर! तें रजपूताणीना दूध पीधा छे ते आ लडाईमां जवाना शूरवीर थवाना
टाणे बायडीनुं मोढु जोवा तुं रोकाणो? छोड ए वृत्ति! शुं आ रागनी वृत्तिमां रोकावाना
टाणां छे? अरे, आ तो शूरवीर थईने शत्रुने जीतवाना टाणां छे, अत्यारे रागनी
वृत्तिमां रोकावानुं न होय.... तेम––
कायरपणे जे अटक्यो छे, ने अंतरमां चैतन्यमां झुकावतो नथी. एवा कायरजीवने
जिनवाणी माता कहे छे के अरे जीव! तुं शूरवीर थईने चैतन्यने साधवा नीकळ्यो छो,
तुं वीरमार्गमां मोहने जीतवा नीकळ्यो छो, तो रागनी रुचि तने न पालवे. रागनी
सामे जोईने रोकवाना आ टाणां नथी; आ तो रागनी रुचि तोडीने शूरवीरपणे
मोहशत्रुने मारवाना ने चैतन्यने साधवाना टाणां छे. वीरमार्गना साधक शूरवीर होय
छे, ते एवा कायर नथी होता के रागनी वृत्तिमां अटकी जाय. वीरनो वीतरागमार्ग
शूरानो छे. ए तो रागना बंधन तोडीने शूरवीरपणे मोहशत्रुने हणे छे ने चैतन्यने
साधे छे.
आराधक जीव रत्नत्रयनी आराधनावडे
परिहारपूर्वक आत्माना ध्यानथी थाय छे.
ईष्टसिद्धिने पामतो नथी. आ रीते मोक्षनी सिद्धि माटे