Atmadharma magazine - Ank 245
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 24 of 49

background image
रजपूताणी कहे छे: आ
माथनो राग तमने
लडाईमां जतां रोके छे
ने! ! ल्यो! आ माथुं
भेगुं लई जाव! !!




माता कहे छे: अरे
कायर! आ शूरवीर–
ताना टाणे तुं स्त्रीना
रागमां रोकाणो?


ए सांभळतावेंत
रागनां बंधन तोडीने
वीरतापूर्वक विजय
साधवा नीकळ्‌यो.
दुश्मनो भागे छे:
रजपूत मारंमार घोडे
तलवार उगामीने जाय
छे.
वीर मार्गने साधवा नीकळेला परमार्थरसिक जीवो केवा पुरुषार्थी होय ने रागनी
रुचिनां बंधन तोडीने केवी वीरताथी चैतन्यने साधे–ते दर्शावती आ चित्रकथा उपरथी
सिद्धांत समजवा माटे आ अंकमां छठ्ठा–सातमा पाने प्रसिद्ध थयेल लेख वांचो.