: १२ : आत्मधर्म पोन्नूर यात्रा–अंक
तुज चरणोथी वसुन्धरा आ पावन थई छे भारी,
गुरुवर साथे दर्शन करतां आनंद अपरंपारी,
आनंद अपरंपारी मुनिवर....तुमसे लगनी लागी....तुमसे लगनी
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गुरुवर साथे यात्रा करतां आनंद अपरंपारी,
तीर्थभूमिनां दर्शन करतां गुरुवर मारा हरखे,
गुरुदेवे आ धाम बताव्या धन धन भाग्य हमारा,
धनधन भाग्य हमारा....मुनिवर....तुमसे लगनी लागी....तुमसे लगनी
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प र स म ण : : : अप समन बनय.
सत्पुरुष उपकारअर्थे जे उपदेश करे छे ते श्रवण करे ने
विचारे तो जीवना दोषो अवश्य घटे; पारसमणिनो संग थयो
ने लोढानुं सुवर्ण न थयुं तो कां तो पारसमणि नहीं अने कां तो
खरूं लोढुं नहीं. तेवी ज रीते जे उपदेशथी सुवर्णमय आत्मा न
थाय ते उपदेष्टा कां तो सत्पुरुष नहीं अने कां तो सामो माणस
योग्य जीव नहीं. योग्य जीव अने खरा सत्पुरुष होय तो गुणो
प्रगट्या विना रहे नहीं.
(श्रीमद्राजचंद्र उपदेशछाया: ८)