Atmadharma magazine - Ank 245
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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पोन्नूर यात्रा–अंक आत्मधर्म : १३ :
आचार्यदेव निजवैभव देखाडीने
स्वघरमां वास्तु करावे छे
फागण सुद ११ ना दिने राजकोटमां शेठ मोहनलाल
कानजीभाई घीयाना सुपुत्र रतिलालभाईना मकानना
वास्तु प्रसंगे पू. गुरुदेवना प्रवचनमांथी.
मोक्षार्थीनी कार्यसिद्धि चैतन्यना अनुभवरूप
सम्यग्दर्शनथी ज थाय छे; माटे साचो कार्यकर्ता ते छे के
जेणे स्वानुभववडे सम्यग्दर्शन कार्य कर्युं.
आ जगतमां भगवान आत्मा सर्वोत्कृष्ट पदार्थ छे; आवा आत्माने द्रष्टिमां
लईने अनुभव करवामां कोई बीजानी के रागनी मदद नथी. चैतन्यस्वभाव आत्मा छे
ते ज सौथी ईष्ट पदार्थ छे, तेने बीजो कोई पर पदार्थ नथी तो ईष्ट के नथी अनीष्ट;
एटले क््यांयक राग–द्वेष करवानुं तेना स्वरूपमां नथी. शरीर तो जड छे, ने अंदर
पापनी के पुण्यनी जे वृत्ति ऊठे छे तेनाथी पण भगवान आत्मा पार छे; ते पोते
आनंदरसथी भरेलो छे. शुद्धनयवडे आवी निर्विकल्प वस्तुनो अनुभव थाय छे. ए
शुद्धनय पोते पण निर्विकल्प छे. आवा शुद्धनयवडे भगवान आत्माने देखतां अतीन्द्रिय
आनंदनुं वेदन आवे ते धर्म छे; ते सम्यग्दर्शननी रीते छे. आवा आत्मानो अनुभव तो
बहु आगळनी वात छे, ते पहेलांं सत्समागमे तेनो परिचय करीने आ वात लक्षमां
लेवी जोईए. शुद्धनयनुं यथार्थ लक्ष पण जीवे कदी कर्युं नथी. भगवान कुंदकुंदाचार्य
विदेहक्षेत्रमां जई साक्षात् सीमंधर परमात्मा पासेथी दिव्यध्वनिमां जे सांभळी आव्या
ने अंतरमां जे अनुभव्युं ते आ समयसारमां बताव्युं छे. तेमां कहे छे के अरे जीव!
शुद्धचैतन्यस्वरूप आ आत्मा परथी भिन्न छे–एनी वात रुचिथी–प्रीतिथी तें कदी
सांभळी नथी, परिचयमां लीधी नथी के अनुभवमां लीधी नथी. ते वात हुं तने समस्त
निजवैभवथी बतावुं छुं; तो तुं पण तारा निजवैभवथी ते अनुभवमां लेजे. जुओ, आ
निजवैभव देखाडीने आचार्यदेव स्वघरमां वास्तु करावे छे.
आ चैतन्यप्रभु आत्मा चेतनालक्षणसहित बिराजमान छे. आ चेतनालक्षणमां
कर्मचेतना नथी, हर्षशोकरूप कर्मफळचेतना पण तेमां नथी; चेतनालक्षण तो रागथी पार