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जीवन माने छे तेमां तो ऊंधी मान्यता वडे तुं तारा चैतन्यजीवनने मारी नांखे छे....
विकारनी कर्तृत्वबुद्धिथी तो चैतन्यनुं मरण थाय छे, जे शांत–आनंदथी भरेलुं
चैतन्यजीवन ते विकारना कर्तृत्वमां रहेतुं नथी. भाई! चिदानंदप्राणने द्रष्टिमां झीलीने
तारा चैतन्यने जीवतो कर. अरे, विकारनुं कर्तृत्व मारा चैतन्यमां नहि, मारुं चैतन्य
विकारनुं तो अकर्ता छे––आवी वीतरागवाणीने आत्मामां झीलीने तुं तारा चैतन्यने
जीवतो कर. अनादिथी अज्ञानभावने लीधे मरणने प्राप्त थतो हतो तेने वीतरागनी
वाणीए जीवतो कर्यो! ... वाह, जुओ तो खरा. वीतरागनी वाणी आत्माने जीवतो करे
छे. परमगुरु श्री तीर्थंकर देवनो उपदेश सांभळतां भावमरण मटे छे. अहा! अमे तो
चैतन्यज्योत छीए, विकार अमारां काम नहि, तेना अमे कर्ता नहि, अमे तो ज्ञाता! –
आम ज्यां वीतरागनी वाणी झीलीने अंतरमां वळ्यो त्यां भ्रांति टळी ने सम्यक्त्व थयुं,
अंतरमां वीजळी ऊतरी गई. चैतन्यभगवान जीवतो थयो..... जुओ, आ वीतरागनी
वाणी!! ते सांभळतां अंदरमां वीजळी जेवो झणझणाट थाय छे ने आत्मा जागी ऊठे
छे. चैतन्य बादशाह आत्मा छे, विकारना कर्तृत्व जेटलो पामर आत्मा नथी, आत्मा तो
अनंतशक्तिनो धणी चैतन्य बादशाह छे, तेनी द्रष्टि करतां आत्मा ‘धर्मधूरंधर’ थाय
छे. ––चैतन्यने द्रष्टिमां लीधो त्यां धर्मनी धूरा आत्माए धारण करी....
बतावनारी वीतरागवाणी पूजय छे. आवो पवित्र स्वभाव तो पूज्य–आदरणीय छे,
ए स्वभावने पामेला परमात्मा पण पूज्य छे. ने ए स्वभावने बतावनारी वाणी पण
पूज्य छे. अहा, जे वाणीए निमित्तपणे आवो चिदानंद स्वभाव बताव्यो ते वाणीने
पण नमस्कार छे. –ते वाणी सदाय जयवंत रहो.
वाणी झीली शके. श्रीमद् कहे छे के:– –
औषध ए भवरोगनां, कायरने प्रतिकूळ.
वीतरागनी वाणी