Atmadharma magazine - Ank 245
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म पोन्नूर यात्रा–अंक
अरे मूढ! तुं तारा ज्ञानस्वभावनी भावनामां रहे ने परने निमित्त थवानी
भावना छोड, स्वपरज्ञेयोने अत्यंत भिन्न जाणीने स्वज्ञेय तरफ वळ, भाई! तेमांज
मध्यस्थता ने वीतरागता छे.
शरीर चाले के वाणी बोलाय, तेनुं कर्ता अचेतनद्रव्य छे. आत्मा कांई तेनो
कर्ता नथी. आत्मा कर्ता थया वगर ज, अचेतन वडे ज ते कार्यो कराय छे. अज्ञानी
कहे छे के शुं मारा वगर थाय? शुं आत्मा विना बोलाय? हा भाई, आत्मा कर्ता
थया वगर ज वाणी बोलाय छे, आत्मा कर्ता थया वगर ज जगतना कार्यो थाय
छे, माटे परद्रव्यना कर्तृत्वनी बुद्धि छोड, तेनो पक्षपात छोड, तेनाथी भिन्न एवा
ज्ञानस्वभावमां वळीने मध्यस्थ था. आ ज सम्यक् दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप धर्मनी
रीत छे, आ ज सत्यनो राह छे.
हुं परनो आधार, हुं देहादिनी क्रियानुं कारण एम अज्ञानदशामां जे पक्षपात
हतो ते धर्मात्माए भेदज्ञान वडे छोडी दीधो छे, ने साक्षात् अकर्ता–साक्षी एवा
ज्ञानस्वभावनुं स्वसंवेद करीने अत्यंत मध्यस्थता प्रगट करी छे.
आत्मा शरीरनो कर्ता होवामां सर्वथा विरोध छे
गाथा १६रनी टीकामां छेल्ले आचार्यदेव स्पष्ट कहे छे के ‘अनेक परमाणु़द्रव्योना
एकपिंडपर्यायरूप परिणामनो अकर्ता एवो हुं अनेक परमाणुद्रव्योना एकपिंडपर्यायरूप
परिणामात्मक शरीरना कर्तापणे होवामां सर्वथा विरोध छे. ’
जुओ, आचार्यदेव कहे छे के आत्मा शरीरादिनो कर्ता होवामां सर्वथा विरोध छे,
पण एम नथी के कथंचित् (व्यवहारे) कर्तापणुं पण छे. जेम शरीरनी वात करी तेम
वाणी–मन वगेरे समस्त परद्रव्योनी क्रियामां पण आत्मा कर्ता होवामां सर्वथा विरोध
छे अने जेम कर्ता होवामां सर्वथा विरोध छे तेम तेनो आधार होवामां पण सर्वथा
विरोध छे. तेनुं कारण होवामां पण सर्वथा विरोध छे. जेम पुद्गलमय परद्रव्य ते
आत्मा होवामां सर्वथा विरोध छे, तेम ते पुद्गलना कार्योनु कर्तापणुं आत्मामां होवानो
पण सर्वथा विरोध छे, आत्मा तेनो सर्वथा अकर्ता छे.
* भाई, तुं तो ज्ञानतत्त्व छो.
* ज्ञानतत्त्व स्व–परनुं जाणनार होवामां कांई विरोध नथी.
* पण ज्ञानतत्त्व परनुं कांई पण करे एमां सर्वथा विरोध छे.
* ज्ञान परनुं करे एवो व्यवहार नथी पण ज्ञान परने जाणे–एवो व्यवहार छे.