....रा....त्रि....च....र्चा....मां....थी....
अंर्तस्वभावसन्मुख थवुं ते ज मार्ग छे.... कोई पण तत्त्व ल्यो–––सर्वज्ञता हो
के क्रमनियमित पर्याय हो, ––कोई पण तत्त्वनो सम्यक् निर्णय स्वभावनी सन्मुखतावडे
ज थाय छे.
‘हुं ज्ञान छुं’ ––एवा निर्णयना बळनिर्णयनुं फळ रागादिनुं अकर्तापणुं छे, अने
ते अकर्तापणुं ज्ञानस्वभावनी सन्मुखताथी ज थाय छे. ज्यां ज्ञानस्वभावनी सन्मुखता
न होय त्यां क्रमनियमित पर्यायनो के सर्वज्ञतानो पण सम्यक् निर्णय होतो नथी.
जाणनारो पोते, पोते पोताने जाण्या वगर परनुं नक्की करशे कोण? स्वसन्मुख
थईने ‘हुं ज्ञान छुं’ अमे नक्की कर्या विना ज्ञेयनी पर्यायनो क््यो प्रकार छे तेनुं साचुं
ज्ञान थाय नहीं.
जेने रागादि परभावोमां कर्तृत्यबुद्धि तो पडी छे, रागथी जुदुं ज्ञानरूप
परिणमन तो थयुं नथी, तो अज्ञानमां रहीने नियमितक्रमपर्यायनो निर्णय ते क््यांथी
करशे? जेने साचो निर्णय होय ते तो स्वसन्मुख थईने ज्ञानभावपणे परिणमे, ने तेने
रागदिनुं अकर्तापणुं थाय. पोतामां ज्ञानरूप परिणम्या वगर अने रागना अकर्तापणे
परिणम्या वगर, जेमने रागनुं कर्तृत्व सर्वथा छूटी गयुं छे ने जेओ एकला ज्ञानरूप
थया छे एवा भगवान सर्वज्ञदेवनो सम्यक्निर्णय थाय नहि. सर्वज्ञनो निर्णय करनार
पोते ज्ञानरूप थईने ते निर्णय करे छे, पोते रागरूप थईने ते निर्णय करी शकातो नथी.
जाणनारने जाण्या वगर एटले के स्वसन्मुख थया वगर परज्ञेयनी
क्रमबद्धपर्यायनो निर्णय थाय नहि ने कर्तापणुं छूटे नहि.
ज्यारे जाणनारने जाण्यो एटले के स्वसन्मुख थयो त्यारे, रागथी जुदो पडीने
अकर्ता थयो त्यारे ज ज्ञाता थईने ज्ञानरूप परिणम्यो, ने त्यारे ज क्रमनियमितपर्यायनो
निर्णय साचो थयो.
हुं परने करुं के रागने करुं एवो ज्यां भाव छे त्यां ज्ञातापणानो भाव रहेतो
नथी, अने ज्ञतापणा वगर कर्तापणुं टळतुं नथी; ने ज्यां कर्तापणुं होय त्यां क्रमनियमित
पर्यायनो खरो निर्णय होतो नथी.
आ रीते अंर्तस्वभावनी सन्मुख थईने ज्ञानमयभावपणे परिणमवुं ते ज
तत्त्वनिर्णयनो मूळ मार्ग छे.