Atmadharma magazine - Ank 245
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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पोन्नूर यात्रा–अंक आत्मधर्म : २५ :
संसाररूपी जेलमांथी केम छूटया?
आ फागण सुद १र ना रोज राजकोट शहेरमां
सेन्ट्रलजेना सुप्रीन्टेन्डन्ट तरफथी विनंती थतां पू. गुरुदेव श्री
कानजीस्वामी त्यांना केदीओने दर्शन देवा तथा सदुपदेशना
बोधवचनो संभळाववा पधार्या हता. त्यांना करुण अने
वैराग्यप्रेरक वातावरणमां गुरुदेवे लागणीभीना हृदये जे
शब्दो कह्या ते अहीं आपवामां आव्या छे. जेलना
केदीभाईओ गुरुदेवना आ बोधवचनो स्मरणमां राखी
पोताना जीवनने सन्मार्गे वाळे–एम ईच्छीए.
जुओ भाई, आ देहमां रहेलो आत्मा सच्चिदानंदस्वरूप कायमी वस्तु छे, ते
अविनाशी छे; ने पाप, हिंसा वगेरे जे दोष छे, ते क्षणिक छे, ते कांई कायमी वस्तु नथी,
एटले तेने टाळी शकाय छे. क्रोध–मान वगेरे दोष तो आत्मा अज्ञानथी अनादिनो
करतो ज आवे छे ने तेथी ते आ संसाररूपी जेलमां पूरायेलो छे, तेमांथी केम छूटाय?
ते विचारवुं जोईए. दोष तो पहेलांं दरेक आत्मामां होय छे, पण तेनुं भान करीने
एटले के ‘आ मारो अपराध छे पण ते अपराध मारा आत्मानुं कायमी स्वरूप नथी, ’
एम ओळखाण करीने ते अपराधने टाळी शकाय छे ने निर्दोषता प्रगटावी शकाय छे.
जेम पाणी भले ऊनुं थयुं तो पण तेनो स्वभाव तो ठंडो छे, अग्निने ठारी नांखवानो
तेनो स्वभाव छे; एटले जे अग्नि उपर ते ऊनुं थयुं ते ज अग्नि उपर जो ते पडे तो ते
पाणी अग्निने बुझवी नांखे छे, तेम आ आत्मा शांत–शीतळस्वभावी छे, ने क्रोधादि
तो अग्नि जेवा छे; जो के पोतानी भूलथी ज आत्मा क्रोधादि करे छे, पण ते कांई तेनो
असली स्वभाव नथी; असली स्वभाव तो ज्ञान छे तेनुं भान करे तो क्रोधादि टळी
जाय छे ने शांतरस प्रगटे छे. आत्मामां चैतन्यप्रकाश छे ते दोष अने पापना अंधकारने
नाश करी नांखे छे. अहीं (जेलमां) पण भीत उपर लख्युं छे के ‘बधा दुःखनुं
मूळकारण अज्ञान छे, ’ ते अज्ञानने लीधे ज आ संसारनी जेलना बंधनमां आत्मा
बंधायो छे; तेमांथी छूटवा माटे आत्मानी ओळखाण अने सत्समागम करवा जोईए.
आवो अमूल्य मोंघो मनुष्यअवतार मळ्‌यो, ते कांई फरीफरीने नथी मळतो, माटे तेमां
एवुं सारूं काम करवुं जोईए के जेथी आत्मा आ भावबंधननी जेलमांथी छूटे.
श्रीमद्राजचंद्र नानी उंमरमां कहे छे के––