थयेली तेमांथी अहीं चार रूमनुं एक मकान–जेनुं नाम “श्री कानजीस्वामी
यात्रिकाश्रम” छे. ते बंधायुं छे, ने तेमां गुरुदेवनो उतारो हतो; गुरुद्रेवनी पधरामणी
वखते तेनुं उद्घाटन थयुं हतुं. बपोरना प्रवचनमां गुरुदेवे बाहुबलिभगवाननी
जीवनदशानुं अद्भुत भावभीनुं वर्णन कर्युं. प्रवचन पछी अभिषेकनी ऊछामणीमां
कुल लगभग १६ हजार रूा. थया. रात्रे फरीने पर्वत उपर जईने सौए सर्चलाईटना
प्रकाशमां बाहुबलीनाथनी पावनमुद्राना दर्शन कर्या....अहा, फरीफरीने दर्शन करतां
अवनवा भावो जागे छे. गुरुदेवने खूबज प्रसन्नता थती हती. अगाशीमां
बाहुबलिस्वामीनी मुद्रा सामे मीट मांडीने गुरुदेवे भावभीना चित्ते अतीव
प्रसन्नताथी कह्युं: वाह! एमना मुख उपर जुओने! केवा अलौक्किभाव तरवरे छे!
पुण्यनो अतिशय, ने पवित्रता पण अलौक्कि.... बंने देखाई आवे छे. ज्ञान अंतरमां
एवुं लीन थयुं छे के बहार आववानो अवकाश नथी. वीतरागभावमां ज्ञान लीन
थयुं छे. मोढा उपर अनंत आश्चर्यवाळी वीतरागता छे; जाणे चैतन्यनी शीतळतानो
बरफ!! अत्यारे दुनियामां एनो जोटो नथी.
बाहुबलिप्रभुनी घणी घणी भक्ति थई. पू. बेनश्रीबेने पण अनेरा उमंगथी भक्तिरस
रेलाव्यो. गुरुदेव साथे फरीफरीने आ बाहुबलिनाथनी यात्रा करता तेओश्रीने अने
समस्त यात्रिकोने अपार हर्षोल्लास थतो हतो. बाहुबलिदर्शनमां गुरुदेवनो आजनो
प्रमोद कोई अनेरो हतो. आम बहु ज आनंदथी बाहुबलिनाथने नीहाळीने, भक्ति
करीने, बीजी यात्रा पूरी करीने सौ नीचे आव्या.... ने बाहुबलिनाथना वैराग्यजीवननी
कथा सांभळीने सौ सूई गया.
भक्तिथी चरणाभिषेक थयो. प्रथम कळश भाईश्री खीमचंद जे. शेठनो हतो.
कहानगुरुए सुर्वणकळशवडे अभिषेकनो प्रारंभ कर्यो त्यारे बेहद हर्षथी यात्रिको नाची
ऊठ्या हता. अभिषेक बाद गुरुदेवे भक्ति करावी हती. “जंगल वसाव्युं रे संतोए....”
ए गीत वैराग्यभावथी गवडाव्युं हतुं. त्यारबाद “विंध्यगीरी पर बाहुबलिनाथजी भले
बिराजो जी....” ईत्यादि भजनवडे पू. बेनश्रीबेने पण भक्ति करावी हती. आजनी
आनंदकारीयात्राना स्मरणमां हस्ताक्षर आपतां बाहुबलिस्वामीनी सन्मुख बेठाबेठा
गुरुदेवे लख्युं छे के–– “श्री बाहुबलिभगवाननो जय हो.... आनंदामृतनो जय हो.”