Atmadharma magazine - Ank 246
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. चैत्र : आत्मधर्म : १० :
शरीरनो अध्यास घणाकाळनो छे, माटे भिन्नतानो विचार करवो... अत्यारे
निवृत्तिनो वखत करवो.... अत्यारे निवृत्तिनो वखत छे. कंईक नवुं करवुं. देहनुं लक्ष
छोडीने चैतन्यना अमृत उपर द्रष्टि मुकवा जेवुं छे.
अंदरनी गुप्त गुफामां अखंड आनंदमूर्ति आत्मा बेठो छे, ते अमर छे. एनुं लक्ष
करवुं. शरीरनुं तो थया करे. एक माणसने आठआठ वर्ष सुधी एवो रोग रह्यो के
शरीरमां ईयळो पडेली... एमां शुं छे? द्रष्टि त्यांथी खेंची लेवी. आपणे तो आत्माना
अस्तित्व वगेरे गुणोनो विचार करवो. आत्मा आनंदकंद छे.
आपणे तो आत्मानुं संभाळवानुं छे. आ शरीरनो रोग तो ठीक, पण मुख्य रोग
आत्मानो छे. ‘आत्मभ्रांति सम रोग नहि... ’ ए अनादिनो रोग छे ते मटाडीने
आत्मानुं सारूं करवानुं छे. ‘आत्मा शुद्ध–बुद्ध–चैतन्यघन छे... ’ बस, एना ज विचार
करवा. गभरावुं नहि; आ पोतानुं हित करवानो टाईम छे. आत्मा सहजानंदमूर्ति छे–
एनो विचार करवो.
आत्मा असंख्यप्रदेशी, अखंड, अनंत गुणनुं धाम छे, समये समये जे परिणाम
थाय तेनो ते जोनार–जाणनार छे. ए ज समाधिनो मंत्र छे. आवो मनुष्यदेह मळ्‌यो;
सत्समागमनुं आवुं साधन मळ्‌युं, ––पछी शुं छे? बस, ज्ञानस्वरूप आत्मानी भावना
भाववी.. उत्साह राखवो...
शरीरमां रोगादि तो आवे, अंदरमां बहादूर थतां शीखवुं जोईए. जुओने,
आत्मा तो देखनारो, ज्ञान–शांतिनुं धाम छे... अंदर कफ रही गयो–तेनोय जाणनार छे.
कोईनी पर्याय कोईमां आवे नहि. सौ पोतपोतानी पर्यायमां पड्या छे. शरीरने आत्मा
अडतोय नथी. खाली कल्पना करे छे के आम करुं तो आम थाय. शरीरमां रोग आवे ने
बधुं थाय, ––अंतरमां आत्मानो पुरुषार्थ करवानो छे. आत्मा ज्ञानानंदस्वरूप छे––तेनुं
भान करवुं––ए ज खरो मंत्र छे. रागथी पण रहित छे त्यां देहनी शी वात? ––एवा
शुद्ध निरंजनचैतन्यनो विचार करवा जेवो छे, तेने लक्षमां लईने तेनुं मनन करवा जेवुं
छे. बाकी आ देहनी चिंता करवाथी कांई तेनुं नथी मटवानुं; एनुं लक्ष करवाथी के एना
विचार कर्यां करवाथी कांई ए मटवानुं नथी. ––तेमां धीरज राखवी ने आत्माना
विचारमां मन परोववुं. ––तेमां ज शांति छे. बहारनुं कांई धार्युं थोडुं थाय छे? –ए तो
परमाणुनी पर्याय छे.
शरीर शिथिल थई गयुं, रोगादि आव्या ने देह छूटवानां टाणां आव्या... हवे
दुश्मन सामे तैयार थई जाव... राग अने मोहरूपी दुश्मन सामे कम्मर कसो... हुं तो सिंह
जेवो छुं––एम पुरुषार्थ शुं करवा न थाय? रोगनी वेदना कांई आत्मामां थाती नथी,
आत्मा तो जाणनार छे––एनुं लक्ष राखवुं. हुं ने देह जुदा छीए, ज्ञान अने शांतिनो