Atmadharma magazine - Ank 246
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. चैत्र : आत्मधर्म : ११ :
पिंड मारो आत्मा छे––तेनुं ग्रहण करवुं. आत्मानुं रटण करवुं––ते ज
करवानुं छे. ‘हुं जाणनार छुं, मारामां वेदना नथी, दुःख नथी, व्याधि नथी; हुं
ज्ञानने आनंदनो पिंड छुं. ’ पोते पोतानुं काम करवुं. जागृती राखवी; शांति
राखवी. आ तो आराधनानो काळ आव्यो छे––माटे एना विचार करवा. कोई
संभळावे, न संभळावे, पण पोते पोतानुं रटण चालु राखवुं.
भाई, शरीर तारुं कह्युं नथी मानतुं
तो तेना उपर प्रेम शा माटे करे छे?
गुरुदेव वैराग्यनो उत्साह जगाडतां कहे छे के: भाई शरीरमां फेरफार थाय
तेमां आत्माने शुं? विकल्पने चिंता करवाथी शुं मळे छे? चिन्ता शरीरने काम
आवे तेम नथी, तेम चिंता आत्मानेय काम आवे तेम नथी––आम बंने बाजुथी ते
निरर्थक छे. शरीर थोडुं ज कांई तारुं मानवानुं छे? आनंदने शांति बधुं आत्मामां
छे, बाकी आ धूळना ढींगलामां कांई नथी; मफतनो आमथी आम, ने आमथी तेम
कर्यां करे छे. शरीर तो छोडीने जवानुं छे, ते कांई रहेवानुं नथी.
अरे, आ शरीर तारुं कह्युं मानतुं नथी तो तेनी साथे प्रेम शुं करवा करे छे?
पोतानुं माने नहि एना उपर प्रेम शेनो? शरीरमां आत्मानुं धार्युं थाय नहि.
शरीरनी क्रिया ते जडनी क्रिया छे. जुओने, समयसार वगेरेनी टीकामां छेल्ले
आचार्यदेव कहे छे के आ टीकाना शब्दोनी रचना––ए परमाणुथी बनेली छे, ते
मारुं कार्य नथी. ज्यां टीका लखवानी आवी स्थिति.. त्यां आ तो ठेठ क््यां आव्युं!
आत्मा अंदर एकलो अबंधस्वरूप छे. अंतर्मुख थईने तेमां जेटलो रोकाय
तेटलो ज लाभ छे, शुभाशुभ विकारमां रोकायेलो छे तेटलुं नुकशान छे. बाकी तो
बहारमां जेम छे तेम छे. आ शरीरनी स्थिति जुओने! संसार एवो ज छे.
परवस्तु ताराथी तद्न जुदी–तेमां तुं शुं कर?
शरीर नबळुं पड्युं... पण जे आपणी सामुं थाय, जे आपणुं धार्युं न करे
तेना सामे शुं जोवुं? आ शरीर तो आडोडियुं छे... ए तो उंटना अढारे अंग
वांका–जेवुं छे. एनी तो उपेक्षा करवा जेवी छे के जा, तारा सामे हुं नथी जोतो!
जेम घरमां कोई सामुं थाय, आडोडाई करे तो तेनी साथे व्यवहार शुं करवो? ––
तेने घरमां कोण राखे? तेम शरीर तो आत्माथी विरुद्ध स्वभाववाळुं छे, ए
घडीकमां फरी जाय ने आडुं चाले, एनी साथे संबंध शुं करवो? एनुं लक्ष तोडी
नाखवुं. अंदर राग रहित आत्मा चैतन्यसूर्य बिराजे छे तेनी सामे जो. देहनी
अनुकूळतामां के रागमां आनंद माने छे ते तो दुःख छे; चैतन्यस्वभाव आनंदरूप
छे तेनुं लक्ष करवुं.
शुद्ध ज्ञानरूपी आत्मा आ देहदेवळमां संताणो छे. भाई! ज्यां तारा
शरीरना परमाणु फरवा मांड्या त्यां तेने कोण रोके? कां ज्ञाता रहीने जाण... ने कां
विकल्प करीने दुःखी था. पोताना अस्तित्व, वस्तुत्व वगेरे गुणो