Atmadharma magazine - Ank 246
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. चैत्र : आत्मधर्म : १५ :
कहे छे के आत्मद्रव्य पोते मंगळरूप छे, तुं पोते मंगळ छो. चिदानंदस्वरूपी
भगवान आत्मा अनादि अनंत मंगळरूप छे. राग हो, रोग हो पण आत्मा तेनो
जाणनार छे;–आवा आत्माना विचारमां रहेवुं. आत्मा ज्ञान–आनंदमय, ने रागथी
तद्न भिन्न–तेनो विचार, तेनुं मनन ने मंथन करवा जेवुं छे. शरीरमां खखडाट थाय
तेना उपर लक्ष न करतां ज्ञानानंद स्वरूपनुं लक्ष करवुं... भिन्नतानी भावना
शरीरमां नबळाई थई जाय, ईन्द्रियो मोळी पडे–तेथी कांई आत्माने
विचारदशामां वांधो आवतो नथी. आत्मा कांई ईन्द्रियथी नथी जाणतो; तेमज
ईन्द्रियोवडे ते जणातो नथी. आत्मा तो ज्ञानमूर्ति छे, ते ज्ञानथी ज (–ईन्द्रियज्ञानथी
नहि पण अतीन्द्रियज्ञानथी) जणाय छे. “शुद्धबुद्धचैतन्यघन..” ना विचार करवा.
देहनी स्थिति पोताना अधिकारनी वात नथी पण अंदरना विचार ते पोताना
अधिकारनी वात छे. पोतानुं स्वरूप केम पमाय एना ज विचारनुं रटण राखवुं.
अरे, अत्यारे तो जुओने! भणेला पण ‘जीवीत शरीरथी धर्म थाय’ एम
मानीने आ मृतक कलेवरमां मूर्छाई पड्या छे. अमृतस्वरूप भगवान आत्मा पोते
पोताने भूलीने जडकलेरवमां मोहित थयो छे, ––तेनी क्रियाने ते पोतानी माने छे. ––शुं
थाय!
शरीरनी हालत शरीर संभाळशे, पोते पोताना विचारमां रहेवुं. जड शरीरनो
स्वामी आत्मा नथी. जडनो स्वामी तो जड होय; चेतन चेतननो स्वामी होय.
सर्वज्ञस्वभावी आत्मा ईन्द्रियोथी के एकला अनुमानथी जणाई जतो नथी,
स्वसन्मुखताथी ज ते जणाय तेवो छे. अंदर पोतामां आखी वस्तु पडी छे, तेमां
‘करण’ नामनो स्वभाव छे तेथी ते पोते ज साधन थईने परिणमे छे; बीजुं साधन
क््यां हतुं?
एक वस्तुनी बीजी वस्तु जरापण नथी. दरेक द्रव्य पोतपोताना स्वरूपमां
(पोत–पोताना गुणपर्यायमां) मग्न छे, त्यां कोण कोनुं करे?
आ शरीर तो धर्मशाळा जेवुं छे. आत्माने तेमां रहेवानी मुदत छे. मुदत पूरी
थतां अविनाशी आत्मा बीजे चाल्यो जशे. अरे, अविनाशी आत्माने वारंवार आवा
घर बदलवा पडे–ए ते कांई शोभे छे!
शरीर तो फटफटीया जेवुं छे, तेमां तो खखडाट ज होय ने? शांति तो आत्माना
स्वरूपमां छे, तेनो प्रेम करवो. आत्मानो प्रेम छोडीने परभावनो प्रेम करवो ते आत्मा
उपरनो मोटो क्रोध छे. शरीरमां खखडाट थाय तेना उपर लक्ष न करवुं. ज्ञानपरिणतिना
आधार कांई राग नथी. राग साथे के देह साथे ज्ञानपरिणतिने शुं संबंध छे? शरीर
आम रहे तो ठीक ने आम रहे तो अठीक––एवुं कांई आत्मामां नथी. शरीरनी जे
पर्याय थाय छे ते यथायोग्य ज छे. तेनाथी भिन्नतानी भावना राखवी. आत्मा भिन्न
ज छे. जुदो... ने... जुदो.