: प्र. चैत्र : आत्मधर्म : १९ :
ज्ञाननो अने परिणमननो काळ जुदो नथी. जे क्षणे रागथी भिन्न शुद्ध आत्मा जाण्यो ते
क्षणे ज ते स्वभावमां एकतारूप परिणमन थयुं. जो तेवुं परिणमन न थाय, ने रागमां
एकतारूप परिणमन रहे–तो तेने खरेखर भिन्नतानुं ज्ञान थयुं ज नथी. ज्ञाननो ने
एकतारूप परिणमननो एक ज काळ छे, स्व–परनी भिन्नतानुं ज्ञानने स्वमां एकतारूप
परिणमन ते स्वसमयपणुं छे, अने स्व परनी भिन्नतानुं अज्ञान अने परमां एकतारूप
परिणमन–ते परसमयपणुं छे.
स्वभावमां एकत्वरूप निर्विकल्प परणति ते ज केवळज्ञानने उत्पन्न करनारी छे,
ए सिवाय बीजा साधन कहेवाय ते बधा व्यवहारथी छे.
स्वसमयरूप परिणमन ते मोक्षमार्ग छे, तेनुं मूळ भेदज्ञानविद्या छे ने ते
केवळज्ञानने उत्पन्न करनार छे.
परसमयरूप परिणमन ते संसारनुं कारण छे, तेनुं मूळ अविद्या छे, अने ते चार
गतिने उत्पन्न करनार छे.
स्वसमयपणामां तो स्वभावने आधीन परिणमन छे, अने परसमयपणामां
मोहने आधीन परिणमन छे; अविद्याथी पोते स्वभावने भूलीने मोहने आधीन थाय
छे त्यारे पोताना स्वभावथी भ्रष्ट थईने रागादि परभावमां एकपणे परिणमे छे. अने
स्व–परनुं भेदज्ञान करीने पोते ज स्वभावमां एकता करीने रागादिथी भिन्नपणे
परिणमे छे. जीव क््यांक एकता तो करे छे:–
स्वमां एकता करीने परिणमे ते मोक्षमार्ग,
परमां एकता करीने परिणमे ते बंधमार्ग.
आ रीते तेनी परिणतिथी ज तेनो मोक्ष के संसार छे. ‘समय’ एटले जीव
नामनो पदार्थ ते केवो छे? तेना उत्तरमां आचार्यदेवे जीवनो स्वभाव बतावीने, तेनी
अवस्थामां स्वसमय अने परसमय एम बंने जे प्रकारनुं परिणमन बताव्युं. आवा
स्वसमय अने परसमय बंनेने जे ओळखे ते परसमयथी छूटीने स्वसमयरूपे परिणम्या