Atmadharma magazine - Ank 246
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : प्र. चैत्र:
मो. क्ष. मा. र्ग.
‘सम्यग्दर्शन – ज्ञान – चारित्राणि मोक्षमार्गः।’
जेम मोक्ष एक ज प्रकारनो छे, तेम ते मोक्षनुं कारण पण एक ज
प्रकारनुं छे. मोक्षमार्ग कहो, सम्यग्दर्शन – ज्ञान – चारित्र कहो,
शुद्धात्मानी अनुभूति कहो के जैनशासन कहो.... ए बधुं य
आत्माना भूतार्थ–स्वभावना आश्रये ज छे, –आ जैन–
मोक्षमार्ग सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप छे, ते एक ज प्रकारनो छे; मोक्षमार्गना
कांई बे प्रकार नथी; सम्यग्दर्शनादि पण मोक्षमार्ग छे अने व्रतादि शुभराग पण मोक्ष
छे–एम कांई बे मोक्षमार्ग नथी. एक ज मोक्षमार्ग छे ने बीजो मोक्षमार्ग नथी.
मोक्षमार्गना सहचारी अपेक्षाए के निमित्त अपेक्षाए व्रतादिने व्यवहारे मोक्षमार्ग कह्यो,
त्यां एम समजवुं के ते खरेखर मोक्षमार्ग नथी पण तेनी साथे मोक्षमार्गने देखीने तेमां
मोक्षमार्गनो उपचार कर्यो छे. खरो मोक्षमार्ग तो सम्यग्दर्शनादि ज छे. शुद्ध द्रव्यनी
द्रष्टिमां समकितीने व्यवहारनो आश्रय छे ज नहि.
जेम परद्रव्य भिन्न छे तेम व्यवहारनी रागादि परिणतिने धर्मीजीव मोक्षमार्गथी
भिन्न जाणे छे; रागादि व्यवहारपरिणतिने ते मोक्षमार्ग साथे एकमेक करता नथी.
यथार्थ मोक्षमार्गने ज मोक्षमार्ग कहेवो ते निश्चय छे, अने जे खरेखर मोक्षमार्ग न होय
तेमां मोक्षमार्गनो कोई अपेक्षाए उपचार करवो ते व्यवहार छे, ते खरो मोक्षमार्ग
नथी. एम समजवुं.
मुनिना यथार्थ सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते तो खरेखर मोक्षमार्ग छे; अने ते
मोक्षमार्गना सहकारीपणे महाव्रतना विकल्पने के दिगंबर मुद्राने मोक्षनुं कारण कहेवुं ते
उपचार छे, ते कांई मोक्षनुं खरुं कारण नथी.
साधकने एक ज पर्यायमां कांईक अंशे शुद्धता छे, ने कांईक अंशे रागादि
अशुद्धता पण छे, एक ज पर्यायमां बंने भावो छे;–पण ते बंने भावो कांई मोक्षनुं
साधन नथी;