बंने भावो छे. तेमां जे शुद्धता छे तेनी साथे तो समकितीने एकत्वपरिणमन छे,
ने जे अशुद्धता छे तेनी साथे एकत्वपरिणमन नथी ते अपेक्षाए समकिती
तेनाथी मुक्त छे.
अशुद्धताने हेयपणे जाणे छे.
पर्यायमां एवा बे प्रकार एक साथे होय छे. ज्ञाननी पर्यायमां एकसाथे बे उपयोग न
होय, पण चारित्रनी पर्यायमां अंशे शुद्धता ने अंशे अशुद्धता बंने एक साथे साधकने
होय छे. जो अंशे शुद्धता न होय तो साधकपणुं शेनुं? ने जो अंशे अशुद्धता ज होय तो
पण साधकपणुं केम होय? जो अंशेय शुद्धता न होय ने एकली अशुद्धता ज होय तो
तो मिथ्याद्रष्टिपणुं होय, अने जो अंशेय अशुद्धता न होय ने पूर्ण शुद्धता ज होय तो
तो सिद्धदशा होय. माटे साधकने तो अंशे शुद्धता पण होय छे ने अंशे अशुद्धता पण
होय छे.
अभूतार्थ कह्यो छे, ने समकिती तेमां लीन नथी, तेनाथी जुदो छे, तेनाथी मुक्त छे.
आम एक ज परिणतिमां भिन्न भिन्न भावोने यथार्थ ओळखवा ते भेदज्ञान छे.
लाग्यो? भाई, शरणभूत तो शुद्धआत्मा छे; अने ते शुद्धआत्माने देखनारो शुद्धनय
भूतार्थ छे, ते शुद्धनयपरिणति शुद्धआत्मा साथे एकाकार थई तेनी तेने पण भूतार्थ
कही दीधी छे. अने एना आश्रये सम्यग्दर्शनादि छे. अशुद्धता ते शरणरूप नथी. ते
अशुद्धताने देखनारो व्यवहारनय अभूतार्थ छे, अशरण छे, तेना आश्रये
सम्यग्दर्शनादि नथी.