: २२ : आत्मधर्म : प्र. चैत्र:
जेम मोक्ष एक ज प्रकारनो छे, तेम ते मोक्षनुं कारण पण एक ज प्रकारनुं
छे.–एक ज प्रकारनो मोक्षमार्ग छे. –बीजो प्रकार के बीजुं कारण कहेवुं ते तो उपचार
अशुद्धताने देखनारो व्यवहारनय अभूतार्थ छे. अने शुद्धस्वभावने देखनारो
शुद्धनय ते भूतार्थ छे; तेमां भूतार्थना आश्रये ज सम्यग्दर्शनादि छे. ए महासिद्धांत
कुंदकुंदाचार्यदेवे समयसारनी ११मी गाथामां बताव्यो छे, ते जैनशासननुं मूळ छे,
जैनसिद्धांतनुं रहस्य तेमां भरी दीधुं छे. जे शुद्धात्माने देखे छे–अनुभवे छे ते ज समस्त
जैनशासनने देखे छे, तेणे समस्त शास्त्रोनो नीचोड जाण्यो छे. श्रुतज्ञानने अंतर्मुख
करीने शुद्धात्माने जे जाणतो नथी. ते जैनशासनने जाणतो नथी. जुओ तो खरा,
आचार्यदेवे केवुं स्पष्ट रहस्य खुल्लुं कर्युं छे! शुद्धनय वडे जे शुद्धात्मानी अनुभूति छे ते
ज जैनशासननी अनुभूति छे. ते ज मोक्षमार्ग छे. तेमां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र
समाई जाय छे, ने ते ज जैनसिद्धांतनुं रहस्य छे.
आत्मार्थी जीवो शूरवीर होय छे
आत्मार्थी जीवो खेदमां ज नथी अटकता पण शूरवीर थईने
विषयकषायोने जीते छे; आ संबंधी श्रीमद् राजचंद्रजीनां वचन
हृदयमां कोतरवा जेवा छे–
“खेद नहीं करतां शूरवीरपणुं ग्रहीने ज्ञानीने मार्गे चालतां
मोक्षमारग सुलभ ज छे. विषयकषायादि विशेष विकार करी जाय ते
वखते विचारवाने पोतानुं निर्वीयपणुं जोईने घणो ज खेद थाय छे,
अने आत्माने वारंवार निंदे छे; फरीफरीने तिरस्कारवृत्तिथी जोई
महंत पुरुषना चरित्र अने वाक्यनुं अवलंबन ग्रहण करी, आत्माने
शौर्य उपजावी, ते विषयादि सामे अति हठ करीने तेने हठावे छे. त्यां
सुधी नीचे मने बेसता नथी. तेम एकलो खेद करीने अटकी रहेता
नथी. ए ज वृत्तिनुं अवलंबन आत्मार्थी जीवोए लीधुं छे, अने तेथी
ज अंते जय पाम्या छे.
आ वात सर्वे मुमुक्षुओए मुखे करी हृदयमां स्थिर करवा
योग्य छे.”
श्रीमद् राजचंद्र (८१९)