Atmadharma magazine - Ank 246
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. चैत्र : आत्मधर्म : २३ :
अरिहंत भगवंतोनो सन्देश
(मोक्षमार्ग प्रकाशक: उपरना प्रवचनोमांथी)
अरिहंतपणुं ते आत्मानी पूर्ण पवित्र दशा छे. शरीरमां के वाणीमां अरिहंतपणुं
नथी. परंतु पोताना ज्ञानादि गुणोनी पूर्ण प्रगट दशा थई गई ते पूर्ण दशामां ज
अरिहंतपणुं छे. ते अरिहंत दशा प्रगटावनार आत्माओए पूर्वे शुं कर्युं हतुं? क्या
उपाय करवाथी तेमने अरिहंतदशा प्रगटी हती, ते प्रथम जाणवानी जरूर छे.
जे जीवोने अरिहंतदशा प्रगटी छे ते जीवो पूर्वे संसार दशामां हता. पछी आत्म
स्वभावनी यथार्थ रुचि थतां साचा ज्ञान वडे पोतानुं परिपूर्ण आत्मस्वरूप तेओए
जाण्युं अने साची श्रद्धा करी, “हुं शुद्ध स्वभावी आत्मा छुं, परवस्तुथी हुं जुदो छुं, मारी
शुद्धता मारा स्वभावना अवलंबनथी प्रगटे छे, पण पर वस्तुथी मारी शुद्ध दशा
प्रगटती नथी, तथा राग थाय ते मारुं मूळ स्वरूप नथी, पर वस्तु मारुं कांई करती
नथी अने हुं परवस्तुनुं कांई करी शकतो नथी” आ प्रमाणे ते आत्माओए यथार्थपणे
जाण्युं अने मान्युं. त्यार पछी ते ज श्रद्धा अने ज्ञानने घूंटता घूंटता क्रमे क्रमे स्वभाव
तरफथी स्थिरता वधती गई तेम तेम रागद्वेष छ्रूटतो गयो. छेवटे परिपूर्ण पुरुषार्थ द्वारा
संपूर्ण स्वरूपस्थिरता करीने ते आत्माओए वीतरागता अने केवळज्ञान प्रगट कर्युं.
संपूर्ण वीतरागता अने संपूर्ण ज्ञान ए ज आत्मानी अरिहंतदशा छे. आ रीते
अरिहंतदशा प्रगट करनार आत्माओए सर्वथी पहेलां आत्मानी रुचिवडे साचां श्रद्धा
ज्ञान कर्यां अने पछी स्थिरता वडे वीतरागता अने संपूर्णज्ञानरूप अरिहंतदशा प्रगट
करी. अरिहंतदशा प्रगट थतां पूर्वना पुण्यना कारणे दिव्यध्वनि छूटी ते दिव्यध्वनिमां
भगवाने शुं कह्युं?
ए ध्यान राखवुं के दिव्यध्वनि ते अरिहंत भगवानना आत्मानो गुण नथी,
पण जड परमाणुओनी अवस्था छे. खरेखर ते दिव्यध्वनिनो कर्ता आत्मा नथी. आत्मा
पोताना संपूर्ण ज्ञान अने वीतरागतानो कर्ता छे. दिव्यध्वनि तो परमाणुओनी
अवस्था छे. परंतु भगवाननी पूर्ण दशानुं निमित्त पामीने ते वाणीमां पण पूर्ण कथन
आवे छे. जे उपाय करवाथी पोतानी पूर्ण अरिहंत दशा प्रगट करी ते उपायनुं कथन ते
वाणीमां