: २४ : आत्मधर्म : प्र. चैत्र:
आवे छे. जेवो आत्मस्वभाव पोते जाण्यो तेवा परिपूर्ण आत्मस्वभावनुं
स्वरूप ते वाणीमां कह्युं छे. अने ते स्वरूपनी प्राप्ति शुं करवाथी थाय ते पण ते वाणीमां
आवे छे. अरिहंत भगवंतो दिव्यध्वनि द्वारा कहे छे के...........
जेवो हुं परिपूर्ण आत्मा छुं तेवा ज जगतना बधा जीवो परिपूर्ण स्वभावे छे.
में मारी परिपूर्ण सर्वज्ञ वीतरागदशा प्रगट करी छे तेवी ज दशा बधा जीवो प्रगट करी
शके छे. मारी परिपूर्णदशा में मारा स्वभावमांथी प्रगट करी छे, कोई परवस्तुमांथी
मारी पूर्णदशा आवी नथी. अने जगतना सर्वे जीवोनी दशा पोताना स्वभावमांथी ज
प्रगटे छे. परद्रव्योथी हुं जुदो छुं, कोई परवस्तुनुं हुं करी शकतो नथी तेम जगतना बधा
जीवो परवस्तुनुं करी शकता नथी. जेम मारामां रागद्वेष नथी तेम जगतना बधा
जीवोनुं स्वरूप पण रागरहित संपूर्ण छे. आ प्रमाणे प्रथम स्वाधीन स्वरूपने जाणीने
तेनी श्रद्धा करो अने ते ज स्वभावनी श्रद्धाज्ञानना द्रढ अभ्यासवडे स्थिरता करीने
रागनो नाश करतां वीतरागता थई केवळ ज्ञानदशा प्रगट थाय छे. आ ज अरिहंतदशा
प्रगट करवानो उपाय छे–एम श्री अरिहंत भगवाने कह्युं छे.
आ रीते अरिहंत भगवाने शुं कर्युं अने शुं कह्युं–ए जो जीव सारी रीते ओळखे
तो पोते ते उपायो करे अने तेनाथी विरूद्ध उपायो छोडे.
अरिहंतदशा प्रगटाववा पहेलांं अरिहंत भगवाननुं साचुं स्वरूप जाणवुं जोईए.
अरिहंत भगवान आत्मा हता अने आत्मामांथी ज तेमणे अरिहंतदशा
प्रगट करी छे.
जेवो अरिहंतनो आत्मा छे तेवा ज बधा आत्माओ छे अने बधा
आत्माओ साचा उपायथी पूर्णदशा प्रगट करी शके छे.
अरिहंतना आत्माए पहेलां आत्मानुं साचुं ज्ञान अने साची श्रद्धा करी
हती. एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कांई करे नहीं अने राग मारो स्वभाव नहि–
एम स्वभावने जाणीने पछी तेओए स्थिरता द्वारा राग छोड्यो हतो, अने
केवळज्ञान–अरिहंतदशा प्रगट करी हती. माटे जीवोए पहेलां साचां
श्रद्धाज्ञान करवां जोईए अने त्यारपछी स्थिरताद्वारा रागना त्यागनो
प्रयत्न करवो जोईए.
आवो श्री अरिहंत भगवंतनो संदेश जगतना सर्वे जीवोने साचा धर्मनी वृद्वि
करवा माटे छे......... संतोए ते सन्देश साक्षात् झीलीने जगतने पहोंचाड्यो छे.