Atmadharma magazine - Ank 246
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. चैत्र : आत्मधर्म : २५ :
अतीन्द्रिय आत्मा कई रीते ग्रहाय?
अलिंग्रहणना अलौकि प्रवचनोनी रसधारनुं थोडुंक आस्वादन
प्रवचनसारनी आ १७२मी गाथा उपर अनेक वखत गुरुदेवना प्रवचनो
थया.... ए प्रवचनोनी रसधार कोई अद्भुत–अलौकिक हती.... अध्यात्म–शांत
वातावरणमां धीर–गंभीर–शांत शैलिथी गुरुदेव अलिंगग्रहणना २० बोलनुं जे रहस्य
खोले छे ते खरेखर आ काळनो एक विरल वैभव छे... तेमांय ज्यारे ज्यारे चोथा
बोलनुं विवेचन श्रवण करीए छीए त्यारे एम लागे छे के जाणे चोथा काळमां ज बेठा
बेठा कोई महान श्रुतधर पासेथी आ श्रवण करी रह्यां छीए. एनो थोडोघणो नमुनो
अहीं आप्यो छे. (आत्मधर्म अंक २४१–४२–४३ मां आ संबंधी लेखो आप्या छे.)
आत्मा ईन्द्रियो वडे जाणतो नथी.
आत्मा चेतनामय छे, ईन्द्रियो तो जड अने परद्रव्य साथे जोडाईने काम करे
एवो आत्मानो स्वभाव नथी. अतीन्द्रियज्ञानमय आत्मा छे. ते ईन्द्रियो वडे जाणनारो
नथी. एटले ईन्द्रियज्ञान ते आत्मा नथी. अतीन्द्रियज्ञान ते आत्मा छे. बीजी रीते
कहीए तो, जेटलो व्यवहारनो विषय छे ते खरेखर आत्मा नथी, शुद्धनयनो जे विषय
छे ते ज परमार्थ आत्मा छे. ईन्द्रियोथी तो अत्यंत विभक्तपणुं साध्युं छे, तो ते ईन्द्रियो
आत्मामां प्रवेशवानुं साधन केम होय? ते चैतन्यनुं चिह्न केम होय? चेतन स्वभावी
आत्मा एवो पराधीन केम होय ते जाणवा माटे तेने परद्रव्यनुं ग्रहण करवुं पडे?
जाणनार आत्मा ईन्द्रियोथी अत्यंत निरपेक्ष छे.
भाई, जे द्रव्य तारामां नथी ते द्रव्यनुं अवलंबन तारा कार्यने माटे केम होय?
अहा, केवळज्ञानने समीपमां राखीने संतोए अनुभवना अद्भुत रहस्यो खोल्या छे.