नथी. स्वज्ञेय आत्मा तो ईन्द्रियातीत छे.
प्रवेशी शके? ईन्द्रियो ते कांई आत्मामां प्रवेशवानो मार्ग नथी. ईन्द्रिय तरफना
वलणवाळा भावोथी (के शुभरागथी) आत्मानुं ज्ञान थई जशे–एम जे माने छे ते
ईन्द्रियोथी ने रागथी भिन्न चैतन्यभय आत्माने ते जाणतो नथी.
प्रत्यक्ष थाय एवो तारो आत्मा छे ज नहि माटे आत्माने जाणवो होय तो तुं
ईन्द्रियोनी प्रीति छोड..... ने चैतन्यनी प्रीति करीने तेनी सन्मुख था.
थई शकतुं नथी–के आणे आत्माने जाण्यो छे. आ आत्मा ज्ञानी धर्मात्मा छे एम
अनुमान थई शके खरुं, पण ते अनुमान ईन्द्रियगम्यचिह्नो वडे नथी थतुं, अंतरमां
चैतन्यना लक्षपूर्वक ज तेनुं अनुमान थई शके छे. धर्मी सम्यग्द्रष्टि आत्मज्ञानी
लडाईना प्रसंगमां ऊभा होय, ने अज्ञानी मिथ्याद्रष्टि ध्यानमां स्थिर थई गयेलो
देखाय;–ए रीते आंखद्वारा धर्मी–अधर्मीनुं माप थई शकतुं नथी. अतीन्द्रिय चैतन्य ते
ईन्द्रियगम्य चिह्नवडे अनुमानमां केम आवे? ईन्द्रियोथी पार थईने चैतन्य वडे ते
प्रत्यक्ष थाय छे. ईन्द्रियोथी जुदो पड्या वगर आत्मा लक्षमां आवे के अनुमानमां
आवे–एम बनतुं नथी.