Atmadharma magazine - Ank 246
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : प्र. चैत्र:
ईंद्रियो वडे आत्मा जणातो नथी.
चैतन्यचिह्नवाळो अतीन्द्रिय आत्मा ईन्द्रियोवडे लक्षमां आवी शकतो नथी.
ईन्द्रियो तरफ झूकेलुं ज्ञान तो स्थूळ परज्ञेयने जाणे छे पण तेनाथी स्वज्ञेय जणातुं
नथी. स्वज्ञेय आत्मा तो ईन्द्रियातीत छे.
भाई, पहेलांं लक्षमां लईने तारी विचारधारामां आ वात घूंट. पहेलां सत्य शुं
छे ते लक्षमां पण न ल्ये ने विपरीत मान्यताने घूंट्या करे तो आत्मामां क्यांथी
प्रवेशी शके? ईन्द्रियो ते कांई आत्मामां प्रवेशवानो मार्ग नथी. ईन्द्रिय तरफना
वलणवाळा भावोथी (के शुभरागथी) आत्मानुं ज्ञान थई जशे–एम जे माने छे ते
ईन्द्रियोथी ने रागथी भिन्न चैतन्यभय आत्माने ते जाणतो नथी.
जेने ईन्द्रियोथी ज्ञान थवानी मान्यता छे तेने ईन्द्रियो प्रत्ये–मैत्री छे,
ईन्द्रियोथी भिन्न एवा अतीन्द्रिय चैतन्यनी प्रीति–मैत्री तेने नथी. भाई, ईन्द्रियोथी
प्रत्यक्ष थाय एवो तारो आत्मा छे ज नहि माटे आत्माने जाणवो होय तो तुं
ईन्द्रियोनी प्रीति छोड..... ने चैतन्यनी प्रीति करीने तेनी सन्मुख था.
ईंद्रियगम्य चिह्नवडे आत्मा जणातो नथी.
शरीर स्थिर देखातुं होय के मुख वगेरे उपर अमुक चेष्टा देखाती होय, बहु
भणतर भण्यो होय के वाणी शांत होय–एवा कोई ईन्द्रियचिह्नोथी आत्मानुं अनुमान
थई शकतुं नथी–के आणे आत्माने जाण्यो छे. आ आत्मा ज्ञानी धर्मात्मा छे एम
अनुमान थई शके खरुं, पण ते अनुमान ईन्द्रियगम्यचिह्नो वडे नथी थतुं, अंतरमां
चैतन्यना लक्षपूर्वक ज तेनुं अनुमान थई शके छे. धर्मी सम्यग्द्रष्टि आत्मज्ञानी
लडाईना प्रसंगमां ऊभा होय, ने अज्ञानी मिथ्याद्रष्टि ध्यानमां स्थिर थई गयेलो
देखाय;–ए रीते आंखद्वारा धर्मी–अधर्मीनुं माप थई शकतुं नथी. अतीन्द्रिय चैतन्य ते
ईन्द्रियगम्य चिह्नवडे अनुमानमां केम आवे? ईन्द्रियोथी पार थईने चैतन्य वडे ते
प्रत्यक्ष थाय छे. ईन्द्रियोथी जुदो पड्या वगर आत्मा लक्षमां आवे के अनुमानमां
आवे–एम बनतुं नथी.
प्रत्यक्ष वगर एकला अनुमानथी आत्मा जणातो नथी.
जेणे पोताना आत्माने स्वसंवेदनप्रत्यक्षथी ओळख्यो नथी ते बीजाना आत्माने
एकला अनुमानथी (–एटले के एकला व्यवहारथी) जाणी शके–एम बनतुं नथी. स्व–