Atmadharma magazine - Ank 246
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : प्र. चैत्र:
गुणस्थानोनी तो वात शुं कहेवी? माटे औदयिकभावना भरोसे ज्ञान नथी. ज्ञान
स्वशक्तिप्रमाण छे. (जुओ परमार्थवचनिका: मोक्षमार्ग प्रकाशक पानुं ३५६)
बधा ज्ञानीने बहारनो योग सरखो ज होय के विकल्पो सरखा ज होय–एम
कोई जीव हजारो माणसोनी सभामां भाषणनी झपट बोलावतो होय ने
पाणीना पूरनी जेम शास्रोनुं भणतर होय, छतां मोटो मूढ ने अनंतसंसारी होय; त्यारे
बीजी तरफ निर्विकल्प आत्मअनुभूतिना आनंदमां झूलता महा भावलिंगी संत होय,
ने प्रश्ननो जवाब देतांय कदाच न आवडे, –त्यां मूढ जीव एम कहेशे के आने आ जवाब
देता न आवडयुं माटे तेने ज्ञानचेतना नहि होय! –अरे मूढ! तुं चारगतिमां मरी
जईश. ज्ञान–चेतना शुं छे तेनी तने खबर नथी. ज्ञानचेतना तो अंदर आत्माने
चेतवानुं काम करे के वाणीनुं काम करे? ‘मा रुष, मा तुष’ एटला शब्द पण याद न
रह्या छतां अंतरनी ज्ञानचेतना एटली उग्र हती के शिवभूति मुनि केवळज्ञान पाम्या.
तुं कई रीते अनुमान करीश एनी ज्ञानचेतनानुं? हजी पोतामां ज जेने रागथी भिन्न
ज्ञानचेतना प्रगटी नथी ते बीजानुं अनुमान क्यांथी करी शकशे? पोताना
स्वसंवेदनचक्षु जेने उघड्या नथी ते बीजाने क्यांथी देखशे?
जगतना जीवो बहारनी क्रियाथी धर्मनुं अनुमान करे छे. पण ए रीते धर्मनुं के
धर्मात्मानुं साचुं अनुमान थई शकतुं नथी. आ बोलमां आचार्यदेवे धर्मनी अने धर्मीनी
ओळखाणनी रीत जगत पासे खुल्ली मुकी छे.
अहा, आ चोथा बोलमां तो घणुं घणुं रहस्य भर्युं छे. संतोए जंगलमां बेठा
बेठा चैतन्यना निधान पोते अनुभवीने जगत समक्ष खुल्ला मुकया छे, जेने ओळखता
साधकपणुं थाय ने सिद्धना भेटा थाय. पोताना आत्मानी ओळखाण थाय तो ज्ञानी
धर्मात्मा प्रत्ये के देव–गुरु प्रत्ये खरेखरो प्रमोद अने भक्ति ऊछळे. ओळखाण वगर
खरो प्रेम के भक्ति