Atmadharma magazine - Ank 246
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. चैत्र : आत्मधर्म : २९ :
क्यांथी आवे? ज्ञानीने खरेखर ओळखनारो जीव पोते ज्ञानीना मार्गमां भळी जाय छे.
भगवानना मार्गमा भळेलो ज भगवानने खरेखर ओळखी शके छे. ज्ञानीनी खरी
ओळखाण पण कोई अपूर्व पात्रताथी थाय छे. पोते ज्ञानीना मार्गमां भळ्‌या वगर,
ज्ञानीनी जातनो भाव पोतामां प्रगट कर्यां वगर (कजातमां के कुमार्गमां रहीने)
ज्ञानीने खरा स्वरूपे ओळखी शकाय ज नहीं. माटे कह्युं के आत्मा एकला अनुमानथी
ओळखतो नथी. स्वसंवेदन वगरनुं बधुं थोथेथोथा छे.
अहा, आचार्यदेवे एकेक बोलमां अलौकिक शैलिथी आत्मा समजाव्यो छे. जेणे
जंगलमां बेठा बेठा अंतरमां ऊंडा ऊतरीने सिद्धना भेटा कर्यां छे एवा संतोनी आ
वाणी छे. घणा महाभाग्ये आ वात सांभळवा मळे तेम छे.
चैतन्यना ऊंडा ऊंडा हार्द खोलीने,
अमृतचंद्राचार्यदेवना अमृत पानार
परमकृपाळु सद्गुरुदेवनो जय हो!
द्रढ निश्चय
“सत्श्रुतनो परिचय जीवे अवश्य करीने कर्तव्य छे. काळविक्षेप
अने प्रमाद तेमां वारंवार अंतराय करे छे, केमके दीर्घकाळ परिचित
छे. पण जो निश्चय करी तेने अपरिचित करवानी प्रवृत्ति करवामां
आवे तो तेम थई शके एम छे. मुख्य अंतराय होय तो ते जीवनो
अनिश्चय छे.”
श्रीमद्राजचंद्र (८२६)