द्वेष–मोह, कर्मनो संबंध वगेरे छे, ते व्यवहारने जो न माने तो मोक्षमार्गने साधवानुं
ने रागद्वेष–मोहनो अभाव करवानुं पण रहेतुं नथी. बंधन टाळवुं ने मोक्षने
साधवो–ते बंने ५ण व्यवहारनयनो विषय छे, माटे तेने जेम छे तेम जाणवा
जोईए.
शुद्धस्वभावना अवलंबने ज बंधन टळीने मोक्ष सधाय छे. पर्यायमां बंध–मोक्षना
भेदरूप व्यवहारने माने ज नहि तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप साधनानो उद्यम
पण केम करे? अने निश्चयथी शुद्धस्वभाव छे तेने जो न माने तो कोना आश्रये
मोक्षने साधे? माटे, व्यवहारनय अभूतार्थ होवा छतां (आश्रय करवा योग्य न
होवा छतां) तेने जाणवो तो जोईए के पर्यायमां बंधन छे ने ते केम टळे? पर्यायमां
व्यवहार जेम छे तेम न भणे ने ‘हुं सिद्ध भगवान छुं’ एम मानीने शुष्क५णे प्रवर्ते
तो ते निश्चयभासी छे; अने पर्यायमां व्यवहार छे तेने ज परमार्थस्वरूप मानी ल्ये
के तेना आश्रये कल्याण थवानुं माने तो ते व्यवहाराभासी छे. “हे जीवो!
स्वभावनो आश्रय करीने मोक्षमार्गने साधो ने रागादिनो क्षय करो” –आवो मोक्षनो
उपदेश भगवाने आप्यो छे. ५ण जो पर्यायमां बंधन ज न माने तो तेने एवा
मोक्षना उपायना ग्रहणनो अभाव थशे, एटले के मोक्षनो ज अभाव थशे.
अने जो पर्यायमां राग होय तेने ज मोक्षनुं साधन मानी ल्ये तो ते ५ण रागथी
क्यारे छ्रूटे? ने तेने वीतरागतानो उद्यम क्यांथी थाय? राग पोते दुःख अने बंधननुं
कारण छे–तो ते मोक्षसुखनुं कारण केम थाय? निश्चय–व्यवहारना यथार्थ ज्ञानपूर्वक
शुद्धभावना आश्रये धर्मी जीव मोक्षमार्गने साधे छे. (‘भूतार्थने आश्रित जीव सुद्रष्टि
निश्चय होय छे. ’ ए ज रीते भूतार्थने आश्रित जीव मुक्तिने पामे छे.)