Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
ः ६ः वैशाख सुद २
अ....ध्या....त्म....स....न्दे....श
मुंबईनगरीना आझादमेदानमां विशाळ मंडप
वच्चे छ सात हजार जिज्ञासुओनी भव्य सभामां पू.
श्री कानजीस्वामीए जे अध्यात्मसन्देश संभळाव्यो
तेनो थोडोक नमूनो अध्यात्मप्रेमी वांचको माटे अहीं
रजु करवामां आव्यो छे.
आत्मा आ देहथी भिन्न ज्ञानस्वरूप तत्त्व छे; ते स्वतंत्रपणे पोताना कार्यनो
कर्ता छे; जडना कार्यनो कर्ता ते नथी. हवे अज्ञानी पोतामां शुं कार्य करे छे? ने ज्ञानी
पोतामां शुं कार्य करे छे? ते अहीं ओळखावे छे. अंदरमां जे ज्ञानथी विरुद्ध रागनी के
द्वेषनी लागणीओ थाय छे ते विकारी लागणीओने ज निजस्वरूप समजीने अज्ञानी
तेनो कर्ता थाय छे. आ अज्ञानीनुं कार्य छे ने ते ज अधर्म छे, ते ज दुःख अने संसार
छे. ज्ञानी तो रागनी लागणीथी पार निजस्वरूपने जाणतो थको ते पोताना
ज्ञानभावनो ज कर्ता थाय छे, आवो तेनो वीतराग ज्ञानभाव ते ज धर्म छे, ते ज
ज्ञानीनुं कार्य छे.
अरे भाई, जगतमां बीजानुं तुं शुं करीश? जगतमां अनेक जातना
प्राणीओ, विध विध प्रकृतिना मनुष्यो, तेमां कोने तारे सरखा करवा छे? शुं तारी
इच्छा प्रमाणे जगत चालवानुं छे? आ देह अनंता परमाणु भेगा थइने बनेलो छे,
ते अनंता रजकणे पण कांइ तारी इच्छा प्रमाणे परिणमवाना नथी. अरे, बहारनां
काम तो दूर रह्या, अंदरना भावमां थती जे रागनी लागणी, तेनाथी पण पार
वीतरागनो मार्ग छे. भाई वीतरागना मार्ग अलौकिक छे. जे मार्गे सिंह संचर्या ते
मार्गे हरणीयां नहि संचरे...ते मार्गना लीला घास ऊभा ऊभा सुकाइ जशे पण
डरपोक हरणीयां ते मार्गे नहि जाय....तेम धर्मना केसरी सिंह एवा जे तीर्थंकर
भगवंतो तेमनो वीतराग मार्ग अलौकिक छे....रागथी धर्म थायने देहनी क्रियानो हुं
कर्ता–एवी बुद्धिवाळा जीवो वीरना वीतरागमार्गमां नहि