श्री कानजीस्वामीए जे अध्यात्मसन्देश संभळाव्यो
तेनो थोडोक नमूनो अध्यात्मप्रेमी वांचको माटे अहीं
रजु करवामां आव्यो छे.
पोतामां शुं कार्य करे छे? ते अहीं ओळखावे छे. अंदरमां जे ज्ञानथी विरुद्ध रागनी के
द्वेषनी लागणीओ थाय छे ते विकारी लागणीओने ज निजस्वरूप समजीने अज्ञानी
तेनो कर्ता थाय छे. आ अज्ञानीनुं कार्य छे ने ते ज अधर्म छे, ते ज दुःख अने संसार
छे. ज्ञानी तो रागनी लागणीथी पार निजस्वरूपने जाणतो थको ते पोताना
ज्ञानभावनो ज कर्ता थाय छे, आवो तेनो वीतराग ज्ञानभाव ते ज धर्म छे, ते ज
ज्ञानीनुं कार्य छे.
इच्छा प्रमाणे जगत चालवानुं छे? आ देह अनंता परमाणु भेगा थइने बनेलो छे,
ते अनंता रजकणे पण कांइ तारी इच्छा प्रमाणे परिणमवाना नथी. अरे, बहारनां
काम तो दूर रह्या, अंदरना भावमां थती जे रागनी लागणी, तेनाथी पण पार
वीतरागनो मार्ग छे. भाई वीतरागना मार्ग अलौकिक छे. जे मार्गे सिंह संचर्या ते
मार्गे हरणीयां नहि संचरे...ते मार्गना लीला घास ऊभा ऊभा सुकाइ जशे पण
डरपोक हरणीयां ते मार्गे नहि जाय....तेम धर्मना केसरी सिंह एवा जे तीर्थंकर
भगवंतो तेमनो वीतराग मार्ग अलौकिक छे....रागथी धर्म थायने देहनी क्रियानो हुं
कर्ता–एवी बुद्धिवाळा जीवो वीरना वीतरागमार्गमां नहि