Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
वैशाख सुद २ः ७ः
आवी शके, वीतरागी पुरुषार्थना पडकार करतो मुमुक्षु जाग्यो ते रागमां अटके नहि,
श्रद्धानो वीतराग भाव समकितीने पण प्रगटयो छे. अने स्वर्गना इन्द्रो पण
आत्मानी आवी धर्म कथा सांभळवा माटे मध्य लोकमां भगवाननी सभामां आवे
छे....अध्यात्मनी आवी वात सांभळवानो प्रेम जागे तेने पण ऊंचा पुण्य बंधाय
छे, ने अंतरमां जे तेने लक्षगत करे तेनुं तो कोई अपूर्व कल्याण थाय छे.
आवी अध्यात्मनी वात सांभळवानो सुअवसर क्यारेक ज महा भाग्यथी मळे छे.
(“मुंबई समाचार”मांथी)
* * *
ए पंखीडा! जाजे
प्रभुना देशमां...
बोलजे कहेजे....
संदेशमां....ओ पंखीडा
कहेजे के तुम भक्ते
लीधी प्रतिज्ञा–
जीवे छे त्यागीना
भावमां....ओ पंखीडा!