Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 19 of 83

background image
श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
ः १२ः वैशाख सुद २
वीरप्रभुए कहेली आ वाणी पात्र जीवोए झीली...ने अंतर्मुख थईने
सम्यग्दर्शनादि पाम्या. वीरप्रभुनी वाणीना धोध संतोए झील्याने शास्त्रोमां संघर्या,
अहा, ए वाणी सांभळतां वाघना वकस्वभाव छूटी गया...सर्प अने नोळियाना
वेर छूटी गया. झेरी नागना झेरी स्वभाव छूटी गया...मोटा राजकुमारो ए वाणी
झीली आत्मज्ञान पाम्या...निर्विकल्प चैतन्यतत्त्व शुं चीज छे–तेनो उपदेश
भगवाननी वाणीमां आव्यो. तेनो प्रवाह आजेय चाल्यो आवे छे. अंतरमां
विचार–मनन करे तो पोताना पुरुषार्थथी तेनी प्राप्ति थाय छे. ने स्वाश्रयना
वीतरागभावरूप जे वीरमार्ग, ते वीरमार्गने साधीने आत्मा पोते परमात्मा थाय
छे.–आ छे महावीरनो सन्देश.
बोलिये...भगवान महावीर की...जय
महावीर–मार्ग प्रकाशक सन्तोंकी जय...
श्रुतना सागरमांथी नीकळेलुं एक रत्न
तदेवैकं परं रत्नं सर्वशास्त्रमहोदधेः।
रमणीयेषु सर्वेषु तदेकं पुरतः स्थितम्।। ४३।।
ते एक चैतन्यस्वरूप आत्मा ज समस्त शास्त्ररूपी महासमुद्रनुं
परम रत्न छे (अर्थात् ते चैतन्यरत्ननी प्राप्ति माटे ज सर्वशास्त्रनुं
अध्ययन करवामां आवे छे); शास्त्रोना समुद्रनुं मथन करी करीने
संतोए शुं काढयुं?–के श्रुतना दरियामां डुबकी मारीने संतोए आ एक
परम चैतन्यरत्न काढयुं, सर्वे रमणीय पदार्थोमां छे चैतन्यस्वरूप आत्मा
ज एक रमणीय तथा उत्कृष्ट छे.
(पद्मनंदीः एकत्वअशीति अधिकार)