
अहा, ए वाणी सांभळतां वाघना वकस्वभाव छूटी गया...सर्प अने नोळियाना
वेर छूटी गया. झेरी नागना झेरी स्वभाव छूटी गया...मोटा राजकुमारो ए वाणी
झीली आत्मज्ञान पाम्या...निर्विकल्प चैतन्यतत्त्व शुं चीज छे–तेनो उपदेश
भगवाननी वाणीमां आव्यो. तेनो प्रवाह आजेय चाल्यो आवे छे. अंतरमां
विचार–मनन करे तो पोताना पुरुषार्थथी तेनी प्राप्ति थाय छे. ने स्वाश्रयना
वीतरागभावरूप जे वीरमार्ग, ते वीरमार्गने साधीने आत्मा पोते परमात्मा थाय
छे.–आ छे महावीरनो सन्देश.
महावीर–मार्ग प्रकाशक सन्तोंकी जय...
रमणीयेषु सर्वेषु तदेकं पुरतः स्थितम्।। ४३।।
संतोए शुं काढयुं?–के श्रुतना दरियामां डुबकी मारीने संतोए आ एक
परम चैतन्यरत्न काढयुं, सर्वे रमणीय पदार्थोमां छे चैतन्यस्वरूप आत्मा