
जवुं होय तो तेनो आ राह छे के उपयोगने अंतरमां वाळवो. तेने बदले अज्ञानथी
रस्तो भूले ने रागना रस्ते चडी जाय–उपयोगने रागमां जोडी द्ये. पछी रागना
रस्ते गमे तेटलुं दोडे, गमे तेटली शुभरागनी क्रियाओ करे ने पछी पूछे के क्यां
सुधी पहोंच्या?–तो ज्ञानी कहे के भाई, तुं हतो त्यां ने त्यां ज छो, संसारमां ने
संसारमां ज छो, मोक्षना राहे तुं एक पगलुं पण आव्यो नथी. तुं मोक्षना राह
भूलीने संसारना राहे चडी गयो छो एटले अनंतकाळ वीत्यो तोपण तुं संसारमां
ने संसारमां ज छो. भाई, मोक्षना राह तो उपयोगने अंतरमां वाळ तो ज हाथ
आवे तेम छे.
एकताबुद्धि तो चैतन्यमां ज रहे छे, तेथी राग वखते पण ज्ञानीनो उपयोग हणातो
नथी.
छे, तेमां रागनो अभाव छे, एटले धर्मीनो उपयोग रागथी मुक्त छे, छूटो छे,
स्वसन्मुख थइने आवो उपयोग जेने प्रगटयो छे ते ज धर्मी छे.
आश्रयथी लाभ माने तो तो निश्चय–व्यवहारनुं प्रमाणज्ञान थतुं ज नथी. आ
अलिंगग्रहण आत्माना वर्णनमां व्यवहारनुं ज्ञान आवी जाय छे खरुं, परंतु
व्यवहारनो आश्रय छोडावीने परमार्थ शुद्धआत्मानो आश्रय कराव्यो छे. परमार्थना
आश्रये शुद्ध आत्मानुं स्वरूप जाणे त्यारे प्रमाणज्ञान थाय अने त्यारे ज निश्चय–
व्यवहार बन्नेनुं ज्ञान साचुं थाय.
उपयोगरूप जे भावलिंग ते ज धर्मीना धर्मनुं चिह्न छे. धर्मीजीव जड शरीरना चिह्नने
केम धारण