Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
ः ३०ः वैशाख सुद २
जेम एक गामथी बीजा गाम जवुं होय, त्यां अंधारामां मार्ग भूले ने घणुं
दोडी दोडीने पाछा हता त्यां ने त्यां ज आवीने ऊभा रहे, तेम संसारमांथी मोक्षमां
जवुं होय तो तेनो आ राह छे के उपयोगने अंतरमां वाळवो. तेने बदले अज्ञानथी
रस्तो भूले ने रागना रस्ते चडी जाय–उपयोगने रागमां जोडी द्ये. पछी रागना
रस्ते गमे तेटलुं दोडे, गमे तेटली शुभरागनी क्रियाओ करे ने पछी पूछे के क्यां
सुधी पहोंच्या?–तो ज्ञानी कहे के भाई, तुं हतो त्यां ने त्यां ज छो, संसारमां ने
संसारमां ज छो, मोक्षना राहे तुं एक पगलुं पण आव्यो नथी. तुं मोक्षना राह
भूलीने संसारना राहे चडी गयो छो एटले अनंतकाळ वीत्यो तोपण तुं संसारमां
ने संसारमां ज छो. भाई, मोक्षना राह तो उपयोगने अंतरमां वाळ तो ज हाथ
आवे तेम छे.
त्यारे उपयोग विकल्पथी छूटो पडीने अंतरमां वळ्‌यो होय छे. पछी ते
ज्ञानीने विकल्प आवे ने उपयोग तेमां जोडाय तोपण तेमां तेने एकता थती नथी,
एकताबुद्धि तो चैतन्यमां ज रहे छे, तेथी राग वखते पण ज्ञानीनो उपयोग हणातो
नथी.
राग पण उपयोगथी पर छे. तेना वडे ज्ञानीनो उपयोग हणातो नथी–अहो,
आ वात अंतरना लक्ष वगर समजाय तेवी नथी. धर्मीना उपयोगमां चैतन्यनी मुख्यता
छे, तेमां रागनो अभाव छे, एटले धर्मीनो उपयोग रागथी मुक्त छे, छूटो छे,
स्वसन्मुख थइने आवो उपयोग जेने प्रगटयो छे ते ज धर्मी छे.
निश्चय अने व्यवहार बन्नेने जाणवाथी प्रमाणज्ञान थाय छे–ए वात खरी.
पण एनो अर्थ एम नथी के व्यवहारना आश्रयथी लाभ थाय छे. जो व्यवहारना
आश्रयथी लाभ माने तो तो निश्चय–व्यवहारनुं प्रमाणज्ञान थतुं ज नथी. आ
अलिंगग्रहण आत्माना वर्णनमां व्यवहारनुं ज्ञान आवी जाय छे खरुं, परंतु
व्यवहारनो आश्रय छोडावीने परमार्थ शुद्धआत्मानो आश्रय कराव्यो छे. परमार्थना
आश्रये शुद्ध आत्मानुं स्वरूप जाणे त्यारे प्रमाणज्ञान थाय अने त्यारे ज निश्चय–
व्यवहार बन्नेनुं ज्ञान साचुं थाय.
धर्मीना धर्मनुं चिह्न शुं? बहारनुं द्रव्यलिंग–दिगंबर शरीर के पंचमहाव्रतना
शुभ विकल्पो ते खरेखर धर्मीना धर्मनुं चिह्न नथी. अंतरमां चैतन्यना निर्मळ
उपयोगरूप जे भावलिंग ते ज धर्मीना धर्मनुं चिह्न छे. धर्मीजीव जड शरीरना चिह्नने
केम धारण