Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
वैशाख सुद २ः ३१ः
करे? धर्मी जीव विकल्पने केम धारण करे? धर्मी जीव तो शुद्ध उपयोगरूप पोताना धर्मने
ज धारण करे छे, ने ते ज धर्मीनुं चिह्न छे.
अहीं मुनिना चिह्ननी वात करी, ते ज रीते सम्यग्द्रष्टि धर्मात्मा पण विकल्प वडे
के देहनी क्रियारूप चिह्न वडे ओळखाता नथी. तेमनी निर्मळ परिणतिरूप चिह्न वडे ज ते
ओळखाय छे. आ आम बोले छे, आम खाय छे, एम जुए पण तेमनी अंतरनी द्रष्टि
अने परिणति शुं छे तेने न ओळखे तो धर्मीनी ओळखाण थती नथी.
नग्नदशा के पंचमहाव्रत ते खरेखर मुनिनुं चिह्न नथी; परंतु एनो अर्थ
एम नथी के नग्नदशाथी के पंचमहाव्रतथी विरुद्ध स्थिति त्यां होय. मुनिदशामां
द्रव्यलिंग तरीके नियमथी नग्नदशा ज होय ने पंचमहाव्रत ज होय,–एवो ज
व्यवहार होय, पण ते व्यवहार कांइ धर्मीनुं चिह्न नथी, ते व्यवहार छे माटे
मुनिदशा छे–एम नथी. मुनिदशा ते व्यवहारना आश्रये नथी प्रगटी, मुनिदशा तो
चैतन्यना परमार्थस्वरूपमां लीनताथी ज प्रगटी छे. एटले विकल्प के देहनी दशारूप
लिंगथी धर्मीनुं ग्रहण एटले के धर्मीनी ओळखाण थाय नहीं. “आ आत्मा
निर्मळदशारूपे परिणम्यो छे”–एम विकल्प उपरथी के तेनी देहनी क्रिया उपरथी
नक्की थइ शकतुं नथी, पण तेनी अंतरंग निर्मळ परिणतिरूप चिह्ननी ओळखाण
वडे ज ते नक्की थइ शके छे.
आ अलिंगग्रहणना छेल्ला त्रण बोलमां तो आचार्य–भगवाने द्रव्य–गुण–
पर्यायना भेदथी पण पार एकाकार चैतन्य वस्तुनुं अद्भुत रहस्य खोल्युं छे. चैतन्यना
अनुभवना रहस्य जगत पासे खुल्ला मुकीने संतोए महा उपकार कर्यो छे; तेमांय आ
अलिंगग्रहणना २० बोलनुं वर्णन करीने तो कमाल करी छे.
“आ ज्ञान ते आत्मा” एवा गुणभेदना विकल्प वडे आत्मानुं ग्रहण थतुं नथी.
‘ज्ञान ते आत्मा, दर्शन ते आत्मा, चारित्र ते आत्मा’–एवा गुणभेदना विकल्प द्वारा,
आत्मानुं ज्ञान थतुं नथी. आत्मामां अनंतगुण छे खरा, पण गुणोना भेद पाडीने
लक्षमां लेवा जाय तो आत्मा अनुभवमां आवतो नथी;–केमके चैतन्यमूर्ति शुद्ध आत्मा
गुणभेदना विकल्पने स्पर्शतो नथी.
आ ज्ञेय अधिकार छे, तेमां स्वज्ञेय आत्मा केवो छे अने ते कइ रीते जणाय
तेनी आ वात छे. चैतन्यमूर्ति आत्मा इन्द्रियोवडे जाणनारो नथी, ने इन्द्रियोवडे ते
स्वज्ञेय थतो