Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
वैशाख सुद २ः ३३ः
शुं आखी ध्रुववस्तु एक समयनी पर्याय जेटली ज छे? जो एम होय तो तो
पर्यायनो नाश थतां ध्रुववस्तुनो पण नाश थइ जाय छे!–परंतु एम नथी; माटे एक
समयनी पर्यायना ग्रहणवडे (तेना ज्ञानवडे) आखा आत्मानुं ग्रहण (ज्ञान) थतुं
नथी. तो कइ रीते तेनुं ग्रहण थाय? के द्रव्य–गुण–पर्यायथी अभेदरूप जे अखंड स्वज्ञेय
तेनी सन्मुखता वडे ज तेनुं ग्रहण थाय छे. ज्ञानगुणनी पर्याय हो, के श्रद्धा वगेरे कोइ
पण गुणनी पर्याय हो, ते पर्यायविशेषथी एटले पर्यायना भेद पाडीने लक्षमां लेतां शुद्ध
आत्मा स्वज्ञेय थतो नथी.
हवे छेल्ला बोलमां कहे छे के जे शुद्ध पर्याय प्रगटी ते द्रव्यथी आलिंगित नथी.
जुओ तो खरा, आचार्यदेवे आत्माना अनुभवना केवा अद्भुत रहस्यो खोल्यां छे!
शुद्धपर्याय प्रगट करीने तेनुं स्वसंवेदन करनार जीव, प्रत्यभिज्ञानना विषयभूत जे
एकलुं सामान्य द्रव्य, तेने स्पर्शतो नथी; शुद्धपर्याय थइ छे तो द्रव्यना आश्रये; परंतु
शुद्धपर्यायना स्वीकार वगर स्वज्ञेयनो स्वीकार थतो नथी. माटे आत्मा द्रव्यथी नहि
आलिंगित एवो शुद्धपर्याय छे–एम कह्युं. शुद्धपर्यायना वेदनने स्वीकार्या वगर एकला
सामान्यद्रव्यने लक्षमां लइने आत्माने ज्ञेय करवा जाय तो ते ज्ञेय थतो नथी. माटे
आत्मा शुद्धपर्याय छे. केवो? के द्रव्यथी नहि आलिंगित एवो. १८मा बोलमां
गुणभेदरहित शुद्धद्रव्य कह्युं. १९मा बोलमां विशेषपर्यायथी नहि आलिंगित एवुं
शुद्धद्रव्य कह्युं, अने २०मा बोलमां द्रव्यसामान्यथी नहि आलिंगित एवो शुद्धपर्याय–
एम कह्युं; ए रीते शुद्धद्रव्य–गुण–पर्यायनी एकतारूप अखंड स्वज्ञेय बतावीने
आचार्यभगवाने महा उपकार कर्यो छे.
जुओ, आ द्रव्यानुयोगनुं दोहन!! अहो, आचार्य भगवंतोए स्वानुभववडे
द्रव्यानुयोगने दोहीने आ २० बोलमां भरी दीधो छे, ने स्वज्ञेयरूप आत्मानो
साक्षात्कार कराव्यो छे.