Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 58 of 83

background image
श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
वैशाख सुद २ः प१ः
जेम एक ने एक बे थाय तेमां कोई डाह्यो माणस तो ना न पाडे तेम सर्वज्ञता
जगतमां सिद्ध छे तेनी कोइ ना पाडी शके नहि.
कुंदकुंदाचार्य भगवान कहे छे के अहो! “जादोसयं स चेदा सव्वण्हू
आत्मा स्वयं पोताना स्वभावथी सर्वज्ञ थाय छे. पोताना स्वाधीन सर्वज्ञ
स्वभावनी प्रतीत करवी ते ज परमात्मा थवानो उपाय छे. जेने अवतार जोइतो
न होय, जेने भवनां दुःखनो भय लाग्यो होय ने आत्मानी पूर्णानंद
परमात्मादशा प्रगट करवानी धगश होय ते सर्वज्ञनो निर्णय करीने युक्ति,
आगम, अनुभवप्रमाणथी पोताना आत्माना सर्वज्ञ स्वभावनो निर्णय करो,
तेनी प्रतीत करो ने तेमां अंतर्मुख थइने परिणतिनी एकाग्रता करो–आ सर्वज्ञ
थवानो उपाय छे. जुओ! अल्पज्ञता छे, राग छे, निमित्त छे पण तेना आश्रये
सर्वज्ञता थती नथी. सर्वज्ञता तो पोताना ध्रुव स्वभावमांथी ज प्रगटे छे.
अहो! धीरो थइने चैतन्यना स्वभावनो विचार कर. क्यां वळवाथी
सर्वज्ञता खीले? सर्वज्ञता छे, तेनो उपाय करनारा अने कहेनारा पण छे,
तेनाथी विपरीत कहेनारा पण छे. माटे परीक्षा करीने सर्वज्ञने, सर्वज्ञताने
साधनारा संतोने, तथा तेमणे कहेला सर्वज्ञताना उपायने जाणवा जोइए.
टकानी त्रण तोलडी लेवा जाय तो य त्यां टकोरा मारीने परीक्षा करे छे, जो तेने
सर्वज्ञ थवुं होय–पूर्णानंद प्रगट करवो होय तेणे ज्ञानमां परीक्षा करीने सर्वज्ञने
नक्की करवा जोइए अने तेना जेवो पोताना आत्मानो सर्वज्ञस्वभाव छे तेने
परखवो जोइए.
“पारख्यां माणेक मोतियां, परख्यां हेम कपूर;
पण एक न परख्यो आतमा, त्यां रह्यो दिग्मूढ.”
माटे अहीं आचार्य भगवान आत्मानो सर्वज्ञ स्वभाव ओळखावे छे.
अहो! स्वयं आत्मा ज सर्वज्ञतापणे परिणमे छे–आवो निर्णय करे तेने अंतरमां
मुक्तिनो मार्ग खूल्या विना रहे नहि, तेने कोइ जातनो संदेह रहे नहि. स्वभाव
शुं? पर्याय शुं? विकार शुं? निमित्त शुं?–ते बधानी ओळखाण करीने स्वभाव
तरफ वळे तो मुक्तिमार्ग प्रगटे. आ सिवाय बीजा कोइ उपाये मुक्तिमार्ग प्रगटे
नहि ने संदेह टळे नहि.