Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
वैशाख सुद २ः प९ः
वार्ता पहेली
वर्षीतपनुं पारणुं
आठ भवना साथीदार ऋषभदेव अने श्रेयांसकुमारना संबंधनो आ प्रसंग छे.
वैशाख सुद त्रीजनो दिवस छे.
वैशाख सुद बीजनी राते श्रेयांसकुमारने स्वप्न आव्युं के अहा! मारे आंगणे
कल्पवृक्ष आव्युं छे! देवो मारा आंगणे वाजां वगाडे छे, पुष्पवृष्टि थाय छे...इत्यादि
महामंगल स्वप्नथी श्रेयांसकुमार बहु प्रसन्न थाय छे.
वैशाख मास एटले शेरडीनी मोसम!.....शेरडीना निर्दोष रसना घडा भरी
भरीने प्रजाजनो श्रेयांसकुमारने त्यां मूकी जाय छे.....
भोजन समये एक अवधुत योगी चैतन्यना प्रतपनमां मस्त चाल्या आवे छे.
आत्मसाधनामां मस्त ए योगीने एक वर्षना उपवास थई चूकया छे. ए छे भगवान
आदिनाथ मुनिराज! तेमने जोतां ज श्रेयांसकुमारने तेमनी साथेना भवोभवना
संस्कार ताजा थाय छे, तेमनी साथेना मुनिवरोने दीधेला आहारदाननुं स्मरण थाय
छे....ने परम भक्तिपूर्वक वर्ष उपरांतना तपस्वी योगीराजने पोताना आंगणे
विधिपूर्वक पडगाहन करीने नवधाभक्तिथी शेरडीना रसनुं आहारदान करे
छे....भरतक्षेत्रमां आ चोवीसमां मुनिराजने आहारदान देवानो ए प्रसंग असंख्य
वर्षोना अंतरे आ पहेलोवहेलो बन्यो. भरतचक्रवर्ती जेवाए भक्तिथी तेनी अनुमोदना
करी....ने पछी श्रेयांसकुमार दक्षित थइने भगवान आदिनाथना गणधर बन्या...ने
छेवटे अक्षयपद पाम्या.
–ःआ छे अक्षयत्रीजनो टूको इतिहासः–
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