Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
ः ६०ः वैशाख सुद २
वार्ता
बीजी
नेम
राजुल वैराग्य
नेमिनाथ भगवाननी जान जुनागढ नजीक आवी पहोंची त्यां तो पशुओना
करुण चित्कार सांभळीने भगवाने रथ अटकावी दीधो...ए वैरागी महात्मानुं हृदय
पशुओना करुण चित्कार केम सहन करी शके? जगतमां वीतरागी अहिंसानो शंख
फूंकवा अवतरेला ए संत पोताना ज निमित्ते थती पशुहिंसाने केम सांखी शके!! एमणे
रथ पाछो वाळी दीधो....न परणवानो निर्धार करीने ए तो गीरनारधाममां चाल्या
गया ने मुनि थइ ने आत्मसाधनामां तत्पर थया.
आ बाजु नेमस्वामीनो रथ पाछो फर्याना ने तेमना वैराग्यना समाचार
सांभळीने राजीमतीए केटलुं आक्रंद कर्युं हशे!!–ना, ना! ए तो राजीमती हती,–न तो
एणे आक्रंद कर्युं के न तो माता–पितानी अनेक समजावट छतां एणे बीजे परणवानो
विचार कर्यो;–एणे तो वैराग्यमार्ग अंगीकार कर्यो. जे मार्गे स्वामी नेमिनाथ संचर्या
ए ज मारो मार्ग!–एवा द्रढ निर्धार साथे ए पहोंची गइ गीरनारधाममां....ते तल्लीन
बनी आत्म साधनामां–धन्य बनी सौराष्ट्रनी धरा!
ए नेम अने राजुलनुं जीवन आजेय जगतने आदर्श वैराग्यजीवननो सन्देश
आपी रह्युं छे.
वार्ता
त्रीजी
लव–कुश
वैराग्य
राजा रामचंद्रजीना बे पुत्रोः लव अने कुश.
इन्द्रसभामां राम–लक्ष्मणना प्रेमनी प्रसंशा थइ, देवो तेनी परीक्षा करवा
आव्या...तेमणे कृत्रिम वातावरण ऊभुं करी लक्ष्मणने कह्युं के राजा रामचंद्रजी स्वर्गवास
पामी गया...ए सांभळतां ज “हा...राम!” एम कहेतांक लक्ष्मणजी सिंहासनमां ढळी
पडया