Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
वैशाख सुद २ः ६१ः
ने तेमना प्राण ऊडी गया....रामचंद्रजी तीव्र प्रेमने लीधे लक्ष्मणनां मृतशरीरने खभे
उपाडीने साथे फेरवे छे.
आ बाजु लव अने कुश बन्ने कुमारो काकानुं मृत्यु ने पितानी आवी दशा
देखीने संसारथी वैराग्य पामे छे....ने रामचंद्रजी पासे आवी हाथ जोडीने कहे छे के
पिताजी! आ असार संसारनी स्थिति जोईने अमारु चित्त संसारथी विरक्त थयुं
छे...हवे अमे दीक्षा लईने मुनि थइशुं ने आत्माने साधीने केवळज्ञान पामीशुं–माटे
अमने रजा आपो. अंतरमां जोयेलो जे सिद्धनो मार्ग, ते मार्गे हवे अमे विचरशुं.–
आम कही अमृतसागर मुनिराज पासे जइने बन्ने भाईओए दीक्षा लीधी, ने
चैतन्यमां लीन थइ, केवळज्ञान पामी पावागढ सिद्धक्षेत्रथी मुक्ति पाम्या.–ए
पावागढथी पांच करोड मुनिवरो मुक्ति पाम्या छे. त्यांनी यात्रावखते गुरुदेवे
गवडाव्युं हतुं के–
धन्य लव–कुश मुनि आतमहितमें छोडा सब राजपाट....कि तुमने छोडा सब
संसार. राम छोडा, अयोध्या छोडा. जाना जगत असार कि तुमने छोडा सब संसार
अहा, धन्य ए राजकुमारोनुं जीवन!
वार्ता
चोथी
सी....ता....वै....रा....ग्य
राजा रामे लोकोपवादना भयथी सीताने त्यागी दीधा; पछी सीताना बे पुत्रो
लव–कुशे मोटा थईने लडाईमां राम–लक्ष्मणने हराव्या....परस्पर ओळखाण थतां
सीताजीने फरी अयोध्या तेडाववानी वात थई; सीताजीना शीलसंबंधी लोकोनो संदेह
दूर करवाने लोकोमां तेमना शीलनी प्रसिद्धि करवा रामचंद्रजीए सीताजीनी अग्नि
परीक्षा योजी. योजना प्रमाणे मोटो अग्निकुंड तैयार थयो, अने, पंचपरमेष्ठी
भगवंतोना स्मरणपूर्वक, ए भडभडता अग्निकुंडमां सीताजी कूदी पडया, सर्वत्र
हाहाकार छवाई गयो...
एक तरफ अहीं अग्निनी भडभडती ज्योत प्रगटी छे, तो बीजी तरफ एक
महा मुनिराजने केवळज्ञाननी झगझगती ज्योत प्रगटी छे; त्यां उत्सव मनाववा
जई रहेला