Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
ः ६२ः वैशाख सुद २
देवोए सीताजीनी अग्नि परीक्षानुं द्रश्य जोयुं....ने तरत ज मूशळधार वरसाद वडे
अग्निना स्थाने जलसरोवर करी दीधुं, वच्चे कमळनी रचनामां सीताजी शोभता
हता...देवोए सीताजीना शीलनी प्रसंशा करीने तेना शीलमहिमाने जगप्रसिद्ध कर्यो.
हवे राजा राम सीताने कहे छेः देवी! अयोध्यामां चालो...पण धर्मात्मा सीता
वैराग्यथी कहे छे केः हवे अमारे संसार जोईतो नथी, हवे तो अमे दीक्षा लई, आ
असार संसारने छोडीने आत्मकल्याण करशुं. एम कही, रामने अने लव–कुश जेवा
पुत्रोने पण छोडीने, वाळनो लोच करीने पृथ्वीमति आर्यिकाना संघमां समाई जाय छे.
सीताना वैराग्यप्रसंगे रामचंद्रजी मूर्छा पामी जाय छे.–आ कथा आपणने शील अने
वैराग्यनो सन्देश आपे छे.
वार्ता पांचमी
सप्तर्षि मुनिभगवंतो
वीसमा तीर्थंकरना शासननी वात छे. ए धन्यकाळे एक साथे सात मुनिवरो
भरतभूमिने पावन करता हता; मनु, सुरमनु, निचय, सर्वसुंदर, जयवान, विनय अने
संजय–ए सातेय मुनिवरो सगा भाई हता, महा ऋद्धिवंत हता, चरमशरीरी हता. ए
वखते मथुरानगरीमां राजाशत्रुघ्न राज्य करता हता; चरमेन्द्रकृत घोर मरकीनो उपद्रव
त्यां चाली रह्यो हतो. एवामां आ सातेय आकाशविहारी मुनिवरो मथुरानगरीमां
पधार्या. तेमना प्रभावथी मरकीनो घोर उपद्रव शांत थइ गयो, फळफूलथी नगरी खीली
ऊठी....नगरजनोनां हृदय पण भक्तिथी खीली उठया. आखी नगरीए
आनंदोत्सवपूर्वक मुनिवरोनां दर्शन–पूजन कर्या. मथुरामां आजेय ए सप्तर्षि
भगवंतोना प्रतिमा शोभी रह्या छे.
मथुराथी चातुर्मास दरमियान आ मुनिवरो अयोध्यातीर्थनी वंदना करवा
आवेला पण अर्हंत्दासशेठे भ्रमथी तेमने स्वेच्छाचारी मानी, आदर न करेलो; पछी
तेमना महिमानी खबर पडतां मथुरा जई भक्तिथी वंदन–पूजन कर्युं. सीताजीए
अयोध्यापुरीमां आ मुनिवरोने भक्तिथी आहारदान कर्युं.
जगतमंगलकारी ए मुनिभगवंतोने नमस्कार हो.