श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
ः २ः वैशाख सुद २
मुंबईनगरीमां अध्यात्म संदेश
चैत्र वद छठ्ठ ने रविवार ता. ३–प–६४... अहा,
ए दिवसे आखी मुंबईनगरी जाणे आनंदथी हलमली
ऊठी....हजारो जीवोनां टोळां हर्षोल्लासथी आझाद मेदान
तरफ जई रह्या छे...अरे, आ शुं देखाय छे !! जाणे
सोनाना शिखरवाळुं मंदिर!...वाह! ए तो छे
महावीरनगरनुं प्रवेशद्वार. शी एनी शोभा! ने केवो
भव्य ए मंडप!! ने जिज्ञासुओनी केटली बधी भीड!!
सवारमां गुरुदेव पधार्या, सीमंधरनाथना दर्शन कर्यां ने
मुंबईनगरीनी जनताए हर्षभर्युं भव्य स्वागत कर्युं. केवुं
उमंगभर्युं स्वागत! स्वागतगीत, अने स्वागतप्रवचनो
बाद गुरुदेवे आठ हजारनी मानवमेदनी वच्चे चैतन्यनी
सुंदरता दर्शावनारुं सुंदर प्रवचन कर्युं. बपोरे धोमधखता
तापमां हजारो जीवोनां टोळां फरीने ए अध्यात्मसंदेश
सांभळवा उपडया. शुं सांभळ्युं एमणे प्रवचनमां?
प्रवचनमां एमणे समयसारना कर्ता–कर्म अधिकारनी
प्रारंभिक गाथाओनुं विवेचन सांभळ्युं भेदज्ञाननी रीत
सांभळी...ते अहीं आपी छे.
आ समयसार शास्त्र वंचाय छे. आत्मा शुं चीज छे, ते अनादिथी संसारमां केम
रखडे छे ने तेनी मुक्ति केम थाय–ए वात आमां आचार्यदेवे बतावी छे. आ शास्त्रने
समयसार नाटक पण कहे छे, एटले, जेम नाटकमां राजानुं जीवनचरित्र त्रण कलाकमां
देखाडयुं छे, तेम अहीं अनादिअनंत आत्माना संसार तथा मोक्षना स्वांग शुं छे ते
वात आचार्यदेवे समजावेल छे.
आत्मा देहथी तद्न भिन्न चीज छे; अत्यारे पण चैतन्यमूर्ति आत्मा देहथी जुदो
ज छे. देह तो अचेतन, ने आत्मा चेतन; देह तो संयोगी–नाशवान ने आत्मा