अत्यंत जुदाई छे.
करे तो जडदेह साथे ते एकमेक थई जाय. अरे, आवो अवतार पामीने जीव क्षणेक्षणे
भावमरणे मरे छे, चारे गतिमां सौथी दुर्लभ एवो आ मनुष्यअवतार पाम्यो, तेमां
पण सत्समागमे जो आत्मानी ओळखाण न करी तो तारा भावमरणनो अंत
आववानो नथी. संतनी पहेली शिक्षा छे के तारा दोषे तने बंधन छे; परने पोतानुं माने
छे ने पोताना स्वरूपने भूले छे–एवो जीवनो दोष ते संसारनुं कारण छे. भाई, तारुं
कार्य अस्तित्वमां होय, तारा अस्तित्वथी बहार तारुं कार्य न होय. आम छतां ‘मारुं
कार्य परमां, परना कार्यनो हुं कर्ता–’ एवो जे पर साथेना कर्ताकर्मनो अभिप्राय ते तो
दूर कर्यो छे ने ज्ञान तथा राग वच्चे कर्ताकर्मनी मान्यता पण विभावबुद्धि छे; तेने पण
छोडीने जे ज्ञानमय थया एवा सिद्धभगवंतोने नमस्कार कर्या छे.
चिदानंद तत्त्व छे तेने तुं जाण जेम कस्तुरिया मृगलानी डूंटीमां ज सुंगधी कस्तुरी छे
पण ते बहारमां ढुंढे छे...मारामां आवी मजानी सुगंध केम होय! एम तेने विश्वास
आवतो नथी. तेम अज्ञानीने अंदरना निर्विकल्प चिदानंद स्वभावनी प्रतीत बेसती
नथी, ने बहारमां–विकारमां ते पोतानी महत्ता ढुंढे छे. बापु! तारो आनंद तारी पासे
छे, क्यांय बीजे तारो आनंद नथी. आनंद तो तारा ज्ञाननी कळामां छे.
ज्ञानी मगन विषय सुख मांही, यह विपरीत संभवे नांही
विषयोमां सुख पण माने–एम कदी बनतुं नथी.