Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 8 of 83

background image
श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
वैशाख सुद २ः ३ः
असंयोगी अविनाशी; देह द्रश्यमान, आत्मा इंद्रियोथी अद्रश्य; आम बंने चीजनी
अत्यंत जुदाई छे.
देह अने आत्मा बंने चीज जुदी छे; ने जे चीजो जुदी होय ते एकबीजानुं कार्य
करी शके नहीं. जे जेनुं काय करे ते तेनी साथे एकमेक थई जाय. जो आत्मा देहनुं कार्य
करे तो जडदेह साथे ते एकमेक थई जाय. अरे, आवो अवतार पामीने जीव क्षणेक्षणे
भावमरणे मरे छे, चारे गतिमां सौथी दुर्लभ एवो आ मनुष्यअवतार पाम्यो, तेमां
पण सत्समागमे जो आत्मानी ओळखाण न करी तो तारा भावमरणनो अंत
आववानो नथी. संतनी पहेली शिक्षा छे के तारा दोषे तने बंधन छे; परने पोतानुं माने
छे ने पोताना स्वरूपने भूले छे–एवो जीवनो दोष ते संसारनुं कारण छे. भाई, तारुं
कार्य अस्तित्वमां होय, तारा अस्तित्वथी बहार तारुं कार्य न होय. आम छतां ‘मारुं
कार्य परमां, परना कार्यनो हुं कर्ता–’ एवो जे पर साथेना कर्ताकर्मनो अभिप्राय ते तो
दूर कर्यो छे ने ज्ञान तथा राग वच्चे कर्ताकर्मनी मान्यता पण विभावबुद्धि छे; तेने पण
छोडीने जे ज्ञानमय थया एवा सिद्धभगवंतोने नमस्कार कर्या छे.
“करे करम सोही करतारा...जो जाने सो जाननहारा” ‘हुं ज्ञान छुं’ एम जे
नथी अनुभवतो, ते ज परभावनो कर्ता थाय छे. अरे भाई! विभावथी पार तारुं
चिदानंद तत्त्व छे तेने तुं जाण जेम कस्तुरिया मृगलानी डूंटीमां ज सुंगधी कस्तुरी छे
पण ते बहारमां ढुंढे छे...मारामां आवी मजानी सुगंध केम होय! एम तेने विश्वास
आवतो नथी. तेम अज्ञानीने अंदरना निर्विकल्प चिदानंद स्वभावनी प्रतीत बेसती
नथी, ने बहारमां–विकारमां ते पोतानी महत्ता ढुंढे छे. बापु! तारो आनंद तारी पासे
छे, क्यांय बीजे तारो आनंद नथी. आनंद तो तारा ज्ञाननी कळामां छे.
ज्ञानकला जिसके घट जागी, ते जगमांही सहज वैरागी
ज्ञानी मगन विषय सुख मांही, यह विपरीत संभवे नांही
ज्ञानकळा जागी ने अंतरमां चैतन्यना अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद चाख्यो, ते
जगतना कोई विषयोमां मग्न थता नथी. चैतन्यसुखनो स्वाद पण चाखे अने बाह्य
विषयोमां सुख पण माने–एम कदी बनतुं नथी.